नेताजी ने जलियावाला बाग हत्याकांड से दुखी होकर प्रशासनिक सेवा से दे दिया था इस्तीफा

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भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 18 अगस्त को 78वीं पुण्यतिथि है। उन्होंने देश की आजादी के लिए देश और देश के बाहर रहकर अहम लड़ाईयां लड़ीं। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष भी रहे थे। उन्होंने बाद में जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज की स्थापना की और भारत की आजादी की लड़ाई को अंजाम तक ले गये थे। अमर क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस ने ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ और ‘जय हिंद’ जैसे प्रसिद्ध नारे दिए थे।

इतिहास में भले ही नेताजी के देश की आजादी में योगदान को दबाया गया, लेकिन आज की युवा पीढ़ी नेताजी का दिल से सम्मान करती है और उन्हें अपने आदर्श के रूप में देखती हैं। उनके देश की आजादी में अमूल्य योगदान को देखते हुए वर्ष 2021 में मोदी सरकार ने नेताजी के जन्मदिन को ‘पराक्रम दिवस’ घोषित किया। पुण्यतिथि के अवसर पर जानिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

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सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता जानकी नाथ बोस थे, जो एक प्रसिद्ध वकील थे। उनकी माता प्रभावती देवी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। नेताजी अपने 14 भाई-बहनों में 9वें नंबर के थे। वह बचपन से प्रतिभाशाली थे। नेताजी ने 10वीं की परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया।

कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से उन्होंने स्नातक की डिग्री दर्शनशास्त्र में की और पहला स्थान हासिल किया। उसी दौरान सेना में भर्ती हो रही थी। नेताजी ने भी सेना में भर्ती होने का प्रयास किया, परंतु आंखें खराब होने के कारण उनको अयोग्य घोषित कर दिया गया। वे स्वामी विवेकानंद के अनुनायक थे। अपने परिवार की इच्छा के अनुसार वर्ष 1919 में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड पढ़ने गये।

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देश की आजादी के लिए छोड़ दी सिविल सेवा

सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए वर्ष 1920 में आवेदन किया। इस परीक्षा में उन्हें चौ​था स्थान मिला। लेकिन वह जलियावाला बाग हत्याकांड से बहुत दुखी हुए और वर्ष 1921 में प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया। बाद में उनकी मुलाकात गांधीजी हुई और वह कांग्रेस में शामिल हो गए। गांधीजी के कहने पर उन्होंने सी. आर. दास के साथ काम करना शुरू किया, जो बाद में उनके राजनीतिक गुरु बने।

अपनी सूझ-बूझ और मेहनत से सुभाष बहुत जल्द ही कांग्रेस के मुख्य नेताओं में शामिल हो गए थे। उन्होंने देश में हुए कई आंदोलनों में भाग लिया, जिसमें असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन शामिल थे। जब वर्ष 1928 में साइमन कमीशन भारत आया तो कांग्रेस ने इसका विरोध किया, जगह-जगह काले झंडे दिखाए गए।

वर्ष 1938 में कांग्रेस का अध्यक्ष बने

नेताजी सुभाष चंद्र बोस को वर्ष 1938 में कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुना गया। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान ‘राष्ट्रीय योजना समिति’ का गठन किया। उन्हें गांधीजी के विरोध के बाद भी वर्ष 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन में दोबारा अध्यक्ष चुने गए। इस बार उनका मुकाबला पट्टाभि सीतारमैया से था। कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर उन्होंने ‘फॉरवर्ड ब्लाक’ की स्थापना की।

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आज़ाद हिंद रेडियो फ्री व इंडिया सेंटर की स्थापना की

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने भारत के संसाधनों का उपयोग किया तो बोस ने इसका विरोध किया और जन आंदोलन चलाया। इसलिए उन्हें कोलकाता में कैद कर नजरबन्द किया गया। वह जनवरी, 1941 को घर से भाग निकलने में कामयाब रहे। नेताजी अफगानिस्तान के रास्ते जर्मनी पहुंच गए। उन्होंने जर्मनी और जापान से देश की आजादी के लिए मदद मांगी। जनवरी, 1942 में उन्होंने रेडियो बर्लिन से प्रसारण करना शुरू किया, जिससे भारत के लोगों में उत्साह बढ़ा। उन्होंने वहां आज़ाद हिंद रेडियो और फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की।

आजाद हिंद फौज का गठन किया

वर्ष 1943 में नेताजी जर्मनी से सिंगापुर गए। उन्होंने पूर्वी एशिया पहुंचकर रासबिहारी बोस से ‘स्वतंत्रता आन्दोलन’ की कमान अपने हाथों में ली और आजाद हिंद फौज का गठन किया, जिसकी स्थापना मुख्यतः जापानी सेना द्वारा अंग्रेजी फौज से पकड़े गए भारतीय युद्धबन्दियों को लेकर किया गया था। आजाद हिंद फौज में महिलाओं के लिए झांसी की रानी रेजीमेंट बनाई गई। इसके बाद सुभाष चंद्र बोस को ‘नेताजी’ कहा जाने लगा।

अब आजाद हिन्द फ़ौज भारत की ओर बढ़ने लगी और सबसे पहले अंडमान और निकोबार को आजाद किया। आजाद हिंद फौज बर्मा की सीमा पार करके 18 मार्च, 1944 को भारतीय भूमि पर आ धमकी। गांधीजी को राष्ट्रपिता कहकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही संबोधित किया।

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सुभाष चंद्र बोस का निधन

महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निधन को लेकर आज भी विवाद बना हुआ है। यह माना जाता है कि 18 अगस्त, 1945 में एक विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु ताईवान में हो गई, परंतु उसका दुर्घटना का कोई साक्ष्य नहीं मिल सका।

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