व्यक्तित्व

बांग्ला साहित्य को समृद्ध बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने

भारत की प्रमुख भाषाओं में शुमार बांग्ला भाषा के प्रमुख कवि, उपन्यासकार, पत्रकार, लेखक बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का आज 27 जून को 181वां जन्मदिन है। बंकिम चन्द्र देश की आजादी के संघर्ष के दौरान ‘वंदे मातरम्’ राष्ट्रीय गीत लिखकर सदा के लिए अमर हो गए। इस गीत के माध्यम से उन्होंने पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोने का काम किया।

जीवन परिचय

‘वंदे मातरम्’ के रचियता बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म 27 जून, 1838 ई. को बंगाल के 24 परगना ज़िले के कांठल पाड़ा नामक गांव में हुआ था। उनका जन्म बंगाल के एक शिक्षित और सम्पन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था, पिता बंगाल के मिदनापुर में उप कलेक्टर थे, इस कारण उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी वहीं के सरकारी स्कूल में सम्पन्न हुई थी। बंकिम जी की पढ़ने—लिखने में रूचि थी उन्होंने अपने स्कूल के दिनों में पहली कविता लिखी थी।

उनकी शिक्षा हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई थी। बंकिम बहुत मेहनती छात्र थे और उनकी रूचि संस्कृत साहित्य में अधिक थी। वर्ष 1857 में उन्होंने बीए पास किया और 1869 में उन्होंने क़ानून की डिग्री भी हासिल की।

बंकिम लेखक, उपन्यासकार, पत्रकार तो थे साथ ही एक सरकारी अधिकारी भी थे, उन्होंने अपने अफ़सर पिता की तरह कई उच्च सरकारी पदों पर नौकरी की और 1891 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए।

उनका विवाह मात्र ग्यारह वर्ष की उम्र में हो गया था, लेकिन उनकी पत्नी का निधन कुछ वर्षों बाद हो गया, उसके बाद उन्होंने राजलक्ष्मी देवी के साथ दूसरा विवाह किया और उनकी तीन बेटियां थी।

देश प्रेम व मातृभाषा के प्रति लगाव

बंकिमचन्द्र उस समय के कवि और उपन्याकार थे जब बांग्ला साहित्य का विकास बहुत ही कम था, न कोई आदर्श था और न ही रूप या सीमा का कोई विचार।

उनमें देश के प्रति राष्ट्रीय प्रेम शुरूआत से ही था, जो उनकी रचनाओं में साफ झलकता है। उन्हें अपनी मातृभाषा बांग्ला से बहुत लगाव था। युवावस्था में उन्होंने अपने एक मित्र का अंग्रेज़ी में लिखा हुआ पत्र बिना पढ़े ही इस टिप्पणी के साथ लौटा दिया था कि, ‘अंग्रेज़ी न तो तुम्हारी मातृभाषा है और न ही मेरी’। सरकारी सेवा में रहते हुए भी उन्होंने कभी अंग्रेजी भाषा को अपनी कमजोर नहीं बनने दिया।

बांग्ला साहित्य में बंकिम का योगदान

वह बांग्ला भाषा के महान कवि और उपन्यासकार थे। उनकी लेखनी से पूर्व बांग्ला साहित्य अधिक समृद्ध नहीं था, उस समय गद्य-पद्य या उपन्यास आदि रचनाएं कम ही लिखी जाती थीं। ऐसे में बंकिम बांग्ला साहित्य के पथ-प्रदर्शक बन गये। साथ ही हिन्दी को भी उभरने में सहयोग किया। उन्हें ऐतिहासिक उपन्यास लिखने में महारथ हासिल थी। उन्हें भारत के ‘एलेक्जेंडर ड्यूमा’ माना जाता है। उन्हें ब्रिटिश सरकार ने रायबहादुर और सी. आई. ई. की उपाधियों से विभूषित किया।

उनकी प्रथम प्रकाशित रचना ‘राजमोहन्स वाइफ’ थी, जोकि अंग्रेजी में लिखी गई थी। 27 वर्ष की उम्र में बंकिम चन्द्र का पहला बांग्ला उपन्यास ‘दुर्गेशनंदिनी’, जो मार्च 1865 में प्रकाशित हुआ था, लेकिन इससे उनको ज्यादा ख्याति नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1866 ई. में ‘कपालकुंडला’ उपन्यास की रचना की जिसने उन्हें विख्यात कर दिया, इसे उनकी सबसे अधिक रूमानी रचनाओं में से एक माना जाता है।

उन्होंने अप्रैल, 1872 में मासिक पत्रिका ‘बंग दर्शन’ का भी प्रकाशन किया। ‘बंग दर्शन’ ने ही कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर को साहित्य के क्षेत्र में उभारने में मदद की। टैगोर बंकिम को अपना गुरु मानते थे। उनका कहना था कि, ‘बंकिम बांग्ला लेखकों के गुरु और बांग्ला पाठकों के मित्र हैं’।

वर्ष 1874 में उन्होंने प्रसिद्ध देश भक्ति गीत ‘वन्दे मातरम्’ की रचना की, जिसे बाद में ‘आनन्द मठ’ नामक उपन्यास में शामिल किया गया। वन्दे मातरम् गीत को सबसे पहले 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था।

बंकिम की अन्य रचनाएँ

बंगदर्शन में उन्होंने विषवृक्ष (1873) उपन्यास का क्रमिक रूप से प्रकाशन किया। कृष्णकांतेर विल में चटर्जी ने अंग्रेजी शासकों पर तीखा व्यंग्य किया है।

बंकिम जी का प्रसिद्ध उपन्यास “आनंदमठ” था, जो 1882 में प्रकाशित हुआ, जिससे प्रसिद्ध गीत ‘वंदे मातरम्’ लिया गया है। इसमें उत्तर बंगाल में 1773 ई. में हुए ईस्ट इंडिया के विरोध में संन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है। यह किताब हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता का आह्वान करती है। इस प्रसिद्ध गीत वंदे मातरम् को किसी और ने नहीं बल्कि रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा संगीतबद्ध किया गया था। इस पुस्तक में देशभक्ति की भावना है।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी राष्ट्रवादी साहित्यकार को एक विनोदी व्यक्ति के रूप में भी जाना जाता था। उन्होंने हास्य-व्यंग्य से भरपूर ‘कमलाकांतेर दफ़्तर’ जैसी रचनाएँ भी लिखी।

चटर्जी का अंतिम उपन्यास सीताराम (1886) है। इसमें मुस्लिम सत्ता के प्रति एक हिंदू शासक का विरोध दर्शाया गया है।

उनके अन्य उपन्यासों में मृणालिनी, इंदिरा, राधारानी, कृष्णकांतेर दफ्तर, देवी चौधरानी और मोचीराम गौरेर जीवन चरित शामिल है। उनकी कविताएं ललिता ओ मानस नामक संग्रह में प्रकाशित हुई। उन्होंने धर्म, सामाजिक और समसामायिक मुद्दों पर आधारित कई निबंध भी लिखे।

बांग्ला साहित्य का उत्थान इन्हीं के प्रयासों से 19वीं शताब्दी से शुरू हुआ था। उनसे पहले कोई भी लेखक अंग्रेजी या संस्कृत भाषा में ही साहित्य लिखा करता था। बांग्ला साहित्य को आमजन तक पहुंचाने वाले बंकिम चन्द्र ही थे।

निधन

बांग्ला साहित्यकार और देशभक्त बंकिम चन्द्र का देहांत 8 अप्रैल, 1894 ई. को हो गया था।

Rakesh Singh

Leave a Comment

Recent Posts

रोहित शर्मा ने कप्‍तान हार्दिक पांड्या को बाउंड्री पर दौड़ाया।

रोहित शर्मा ने सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ फील्डिंग की सजावट की और कप्‍तान हार्दिक पांड्या…

1 month ago

राजनाथ सिंह ने अग्निवीर स्कीम को लेकर दिया संकेत, सरकार लेगी बड़ा फैसला

अग्निवीर स्कीम को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने…

1 month ago

सुप्रीम कोर्ट का CAA पर रोक लगाने से इनकार, केंद्र सरकार से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) रोक लगाने से इनकार कर दिया…

1 month ago

प्रशांत किशोर ने कि लोकसभा चुनाव पर बड़ी भविष्यवाणी

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बड़ी भविष्यवाणी की है। प्रशांत…

1 month ago

सुधा मूर्ति राज्यसभा के लिए नामित, PM मोदी बोले – आपका स्वागत है….

आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंफोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति…

2 months ago

कोलकाता हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने थामा भाजपा दामन, संदेशखाली पर बोले – महिलाओं के साथ बुरा हुआ है…

कोलकाता हाई के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय भाजपा में शामिल हो गए है। उन्होंने हाल…

2 months ago