लोकसभा चुनाव 2019 सिर्फ दो महीने दूर हैं। व्हाट्सएप राजनीति के लिए एक जंग के मैदान का काम करने वाली है। सोमवार इसी को लेकर व्हाट्सएप का बयान सामने आया। व्हाट्सएप के संचार प्रमुख, कार्ल वूग ने स्वीकार किया कि भारत में राजनीतिक दलों ने चुनाव के दौरान ऐप का दुरुपयोग किया है।
चुनावों के दौरान गलत सूचना से निपटने के लिए मैसेजिंग ऐप में जो टूल काम में लिए जाएंगे उसको लेकर वर्कशोप चल रही थी। इस दौरान वूग ने कहा कि उन्होंने देखा था कि कैसे कर्नाटक चुनाव के दौरान ऐप का इस्तेमाल किया गया था।
आगे वूग ने कहा कि वास्तव में हम इसके लिए तैयारी कर रहे हैं क्योंकि पिछले मई में कर्नाटक में मतदान हुआ था। उस समय हमने देखा कि कैसे पार्टियों ने व्हाट्सएप पर लोगों तक पहुंचने की कोशिश की और कुछ मामलों में व्हाट्सएप को इस तरह से उपयोग करने का प्रयास किया गया जो नहीं होना चाहिए था।
वूग ने यह भी जोर दिया कि उन्होंने राजनीतिक दलों को निर्देश दिए हैं कि ऐप में उन अकाउंट्स पर बैन लगेगा जो ऑटोमेटिक या बल्क एक्शन में मैसेजेस भेजते हैं।
व्हाट्सएप की प्राइवेसी के कमिटमेंट को देखते हुए वोग ने यह भी स्पष्ट किया कि एन्क्रिप्शन को तोड़कर अपने मैसेज का पता लगाने की सरकार की हाल की मांग “संभव नहीं” है और हमारी प्राइवेसी पॉलिसी के अंतर्गत नहीं है।
मैसेजिंग ऐप ने सोमवार को कहा कि यह चुनाव में गलत सूचनाओं से लड़ने के लिए मशीन लर्निंग टूल्स को अप्लाई करेगा और अपनी योजना में ऑटोमेटिक या बल्क मैसेज पर नज़र रख रहा है और जहां भी कुछ गड़बड़ होगी उन अकाउंट्स को तुरंत डिलीट भी कर दिया जाएगा।
व्हाट्सएप ने एक पेपर भी जारी किया जिसमें बताया गया है कि कैसे वे फेक और गाली गलौच मैसेजेस को कंट्रोल करेगा।
ऐप टीम के मैट जॉन का कहना है कि हम हर साल लगभग 2 मिलियन अकाउंट्स को ब्लॉक करते हैं। हालांकि कंपनी ने नहीं बताया है कि भारत में कितने अकाउंट ब्लॉक किए जाते हैं। पूरी दुनिया में लगभग 1.5 बिलियन लोग व्हाट्सएप यूज करते हैं।
ऐप के अधिकारियों का कहना है कि फेक न्यूज और एब्यूसिव कंटेट को दूर करने के अलावा वे पिछले कुछ महीनों में राजनैतिक पार्टियों से भी बातचीत कर रहे हैं ताकि उनको समझाया जा सके कि क्या गलत है और क्या सही।
सरकार ने पिछले कुछ समय पहले व्हाट्सएप से डिमांड की थी कि मैसेजेस को ट्रेस करने के लिए उन्हें एनक्रिप्शन तोड़ने की अनुमति दी जाए।
सरकार चाहती है कि व्हाट्सएप जैसे ऐप अनिवार्य रूप से अपने एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को तोड़ दें और मैसेज और मैटक को एक्सेस करने की अनुमति दें।
और इस पर व्हाट्सएप की यही प्रतिक्रिया आई कि ऐसा किया जाना संभव नहीं है और यह किसी भी तरह से प्राइवेट नहीं रह जाएगा।
एक ऐप जिसे दो लोगों के बीच निजी मैसेजिंग की सुविधा के लिए बनाया गया था उसका उपयोग अफवाहें और गलत जानकारी फैलाने के लिए भी किया गया है जिसके कारण हिंसा हुई है और साथ ही साथ मौतें हुई हैं।
व्हाट्सएप ने जुलाई 2018 में, महारास्ट्र और असम में लिंचिंग के बाद कई सुरक्षा उपायों को लागू किया था ताकि उपयोगकर्ताओं को बेहतर गलत सूचना की पहचान करने में मदद मिल सके।
यह उन संदेशों को चिह्नित करने के लिए एक फोरवार्ड लेबल बनाया गया था जिन्हें आगे भेजा गया है। इसका उद्देश्य लोगों को यह जानने में मदद करना था कि उन्हें जो संदेश मिला है वह उस व्यक्ति द्वारा नहीं बनाया गया है उसे भी कहीं और से मिला है।
व्हाट्सएप ने बल्क फॉरवर्ड पर पांच-चैट तक की सीमा भी लागू की थी। इसने मीडिया मैसेज के आगे क्विक फॉरवर्ड बटन को भी हटा दिया था।
ऐप के साथ आने वाले सभी टूल्स के अलावा व्हाट्सएप ने प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ भी बात की है कि वे प्राइवेसी के मुद्दों की व्याख्या करें और राजनीतिक बल्क मैसेजिंग के खतरे से निपटने के तरीकों पर चर्चा करें।
दुर्व्यवहार और गलत सूचनाओं से लड़ने के लिए व्हाट्सएप की खोज में प्रमुख चीज इसका मशीन-लर्निंग टूल हैं। व्हाट्सएप टीम के प्रमुख सॉफ्टवेयर इंजीनियर मैट जोन्स ने कहा कि वे गलत मैटक के आसपास संकेतों की तलाश करते हैं और एक बार जब उन संकेतों को ट्रिगर किया जाता है तो वे इसके लिए जिम्मेदार उपयोगकर्ता खाते पर बैन लगा देते हैं।
जोन्स के अनुसार, व्हाट्सएप के मशीन-लर्निंग मॉडल में तीन आवश्यक चीजें शामिल हैं:
फीचर्स: फीचर्स एक तरह के सिग्नल होते हैं जैसे कि रिपोर्ट की संख्या, मैसेज भेजने की दर आदि से एब्यूसिव कंटेट का पता चल सकता है।
लेबल: व्हाइट पेपर बताता है कि यह सबसे खराब अपराधियों को चिह्नित करने के लिए लेबल का उपयोग करता है और रोजाना उपयोग कर रहे व्यक्ति के व्यवहार को फिर इससे कन्पेयर किया जाता है। यह अपने सिस्टम को बेहतर ढंग से बनाए रखता है और किसी यूजर की एक्टिविटी के हिसाब से भविष्य में भी उसको बैन कर सकता है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर: इसमें जो मेसेज कर रहा होता है उसके कंटेट को ध्यान रखने के लिए होता है जिससे यूजर के बिहेवियर का पता चलता है। इसका उपयोग क्लासिफियर्स को ट्रेन के लिए भी होता है। उनके परफोर्मेंस को भी देखा जाता है।
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