ज्यादातर मीडिया 10 प्रतिशत आरक्षण को सवर्ण आरक्षण बता रही है वहीं विधेयक सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर तबके आरक्षण देने की बात करता है। लोकसभा और राज्यसभा दोनों जगह बिल पास हो चुका है और अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर भर की देर है।
बहरहाल कुछ लोग लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सरकार के इस फैसले को सवर्ण वोटों को खींचने की एक रणनीति मान रहे हैं। राजनैतिक विशेषज्ञ भी इसी कड़ी में इस कानून को बीजेपी द्वारा चुनावी स्टंट मान रहे हैं।
विधानसभा चुनावों की बात करें तो बीजेपी को हाल ही तीन बड़े राज्यों में हार का सामना करना पड़ा। कहा जा रहा है कि बीजेपी की हार का सबसे बड़ा कारण सवर्ण जातियों की नाराजगी ही था।
तो, क्या मोदी सरकार 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उच्च जाति के लोगों को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही है? इस नए विधेयक से यही लगता है। हम सभी को पता है कि सवर्ण जातियों को बीजेपी का ही वोट बैंक माना जाता है। ऐसे में विधानसभा चुनावों में उनकी नाराजगी सामने दिखी और अब शायद इसीलिए सरकार अपने वोट बैंक को एक बार फिर साधने में लगी है।
दो तरह के वोटर होते हैं। एक कोर वोटर और एक फ्लोटिंग वोटर। कोर वोटर वो जो किसी एक पार्टी से ही हमेशा जुड़े होते हैं। और हमेशा उसी पार्टी की नीतियों और विचारधारा का सपोर्ट करती है। और फ्लोटिंग वोटर वो जो हमेशा अपना मूड बदलते रहते हैं और किसी एक पार्टी से चिपक कर नहीं रहते। बीजेपी इन फ्लोटिंग वोटर्स को ही अपनी ओर खींचने की कोशिश में लगी है।
आरक्षण विरोधी तबके का हमेशा तर्क होता है कि मोदी सरकार ही आरक्षण को खत्म कर सकती है। ऐसे में जब सामान्य वर्ग को किसी शर्त पर आरक्षण दे दिया जाए वो भी 50 प्रतिशत के बाहर तो पार्टी अपना मत साफ रख ही देती है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम को कमजोर किए जाने के खिलाफ मोदी सरकार द्वारा लाए गए संशोधन बिल के कारण भी भाजपा के साथ सवर्णों की नाखुशी देखी गई।
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