हलचल

केजरीवाल की महिलाओं के लिए मुफ्त ट्रेवल स्कीम का विरोध क्यों नहीं होना चाहिए?

जैसा कि सभी खबरों में चल ही रहा है कि दिल्ली सरकार ने शहर में सभी महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन को मुफ्त बनाने की योजना तैयार की है। इसमें दिल्ली मेट्रो, दिल्ली परिवहन निगम की बसों और क्लस्टर बसों को भी शामिल किया जाएगा।

सरकार के इस कदम की प्रशंसा के साथ-साथ इसके समय और इसकी आर्थिक समझ पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। वैसे सरकार के इस कदम को लेकर इतनी जल्दी कुछ कहना सही नहीं है हमें पब्लिक स्पेस में महिलाओं की स्थिति का भी आकलन करने की जरूरत है।

कई सर्वे से पता चला है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में काम पर जाते वक्त ट्रांसपोर्ट में कम खर्चा करती हैं। महिलाएं अधिकतर घरेलू कामों के लिए बाहर निकलती हैं। उदाहरण के लिए मुंबई में कामकाजी वर्ग की महिलाएं सार्वजनिक परिवहन का उपयोग नहीं करती हैं क्योंकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट कहीं ना कहीं उनके के लिए महंगा पड़ता है। वे काम करने के लिए घंटों पैदल चलती हैं। जो महिलाएं सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करती भी हैं वे डायरेक्ट मेट्रो की बजाय कई बसों के द्वारा अपने ऑफिस या काम की जगह पहुंचती हैं क्योंकि ये मेट्रो की बजाय सस्ता पड़ता है।

2000 के पास किए गए एक सर्वे से पता चलता है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट अपने आप में सबसे बड़ा फैक्टर है जो महिलाओं की पब्लिस स्पेस में उनकी पहुंच बनाता है।

इस फैसले के विरोध में क्या तर्क हैं

दिल्ली सरकार के इस कदम के बाद तीन तरह के विरोध और तर्क हमें नजर आ रहे हैं।

1) यह समानता नहीं बल्कि भेदभाव (पुरुषों के खिलाफ) है।

2) हमें केवल महिलाओं के लिए नहीं बल्कि गरीबों के लिए सब्सिडी की जरूरत है।

3) यह एक महंगा और लोगों को लुभाने वाला कदम है जो फैल होगा।

ट्रेनों में महिलाओं के डिब्बों और बसों में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों के मामलों में भी ऐसे ही तर्क दिए जाते हैं। महिलाओं के लिए एक विशेष डिब्बे की उपस्थिति को समानता की कमी के रूप में देखा जाता है। ऐसा सोचना काफी गलत नजर आता है। अगर महिलाओं के लिए आरक्षित एक कंपार्टमेंट है तो जो संस्थान ट्रांसपोर्ट चलाते हैं वे उम्मीद करते हैं कि महिलाएं इन डिब्बों में होंगी।

ऐसा ही दिल्ली सरकार का कदम दिखाता है। इससे पब्लिक स्पेस में महिलाओं की भागीदारी काफी बढ़ेगी। जो महिलाएं टिकट लेना चाहती हैं वे ले भी सकती हैं।

महिलाओं को टिकट लाइन में नहीं लगना होगा। इसका मतलब यह भी है कि सभी महिलाओं को देर रात टिकट खरीदने के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा और इससे उनकी ट्रेन भी नहीं छूटेगी।

ग्रेटर मुंबई नगर निगम बसों आवागमन को हटा रहा है और पब्लिक सिस्टम को खत्म कर रहा है ऐसे में दिल्ली सरकार का यह फैसला महत्वपूर्ण है जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट की अहमियत को समझता है।

सब्सिडी का सवाल

सब्सिडी के सवाल पर जवाब यही बनता है कि वर्किंग क्लास पुरुषों की स्थिति वर्किंग क्लास महिलाओं जैसी नहीं है। इसके अलावा नागरिकों के लिए बुनियादी सेवाओं को प्रदान करने के लिए टैक्स मनी का ही उपयोग होता है। दिल्ली सरकार जो कर रही है वह इस आवश्यकता को पूरा ही कर रहा है।

इन तर्कों के अलावा जब भी महिलाओं को कोई सेवा या सुविधाएं दी जाती हैं, तो सामान्य महिला विरोधी तर्क भी सामने आते हैं। यह भारत तक ही सीमित नहीं है। विदेशों में इसको लेकर बहस देखी गई है।

एक ऐसे देश में जहां महिलाओं पर सख्ती से नजर रखी जाती है पब्लिक स्पेस में वे पहले ही कम नजर आती हैं। ऐसे में दिल्ली सरकार का यह कदम प्रासंगिक है।

सार्वजनिक स्थान पर बड़ी संख्या में महिलाओं की उपस्थिति सभी महिलाओं के अनुभव और सभी यात्रियों की सोच पर भी बड़ा असर डाल सकती है। बड़ी संख्या में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल अगर महिलाएं कर रही हैं तो इसका मतलब यही होता है कि पब्लिक स्पेस में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है।

Neha Chouhan

12 साल का अनुभव, सीखना अब भी जारी, सीधी सोच कोई ​दिखावा नहीं, कथनी नहीं करनी में विश्वास, प्रयोग करने का ज़ज्बा, गलत को गलत कहने की हिम्मत...

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