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भारत-पाक-बांग्लादेश के शरबत मार्केट पर रूह अफ़ज़ा का कब्जा, फिर बाज़ार से गायब क्यों?

भारत में पिछले कुछ महीनों से बाज़ार में लोकप्रिय शरबत रूह अफ़ज़ा नहीं मिलने की सुर्खियां चल रही है। लोग दावा कर रहे हैं कि भारतीय मार्केट में रूह अफ़ज़ा की बोतलें नहीं दिख रही है, लोगों को यह प्रसिद्ध शरबत उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। गर्मी के दिनों और रमज़ान के पाक महीने में आमतौर पर इस गुलाबी शरबत का इस्तेमाल काफ़ी बढ़ जाता है। रूह अफ़ज़ा का भारत, पाकिस्तान और बांग्लोदश के शरबत मार्केट पर कब्जा है। लेकिन यह इनदिनों भारत के मार्केट के गायब है जबकि पाकिस्तान और बांग्लोदश में रूह अफ़ज़ा धल्लड़े से बिक रहा है। हालांकि अब यह शरबत दोगुने से ज्यादा दामों पर पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत पहुंचने लगी है। भारत से शुरु होने वाली हमदर्द की रूह अफज़ा आज हमारे बाज़ार में ही उपलब्ध नहीं है, जबकि पाकिस्तान और बांग्लादेश में इसकी सप्लाई बराबर हो रही है। साथ ही वहां से इसे विदेश तक भेजा जा रहा है। आइये हम आपको इसके पीछे की कहानी और हमदर्द के इतिहास से रूबरू कराते हैं..

दिल्ली की कासिम गली की हवेली से है नाता

रूह अफ़ज़ा बनाने वाली कंपनी हमदर्द की शुरुआत 1906 में दिल्ली से हुई थी। रूह अफज़ा का किस्सा पुरानी दिल्ली की कासिम गली की हवेली के दवाखाना से जुड़ा हुआ है। उल्लेखलीय है कि इस दवाखाने का नाम हमदर्द था। इस दवाखाने को एक हकीम अब्दुल मजीद चलाया करते थे। यूनानी पद्धति की चिकित्सा वाला यह दवाखाना 1900 में शुरु हुआ था। बहुत ही कम समय में यह लोकप्रिय होने लगा। हकीम मजीद अपने नुस्खे पर दवा बनाया करते थे और रोगियों को दिया करते थे। इसी समय में मजीद ने गर्मियों में शीतलता देने वाली एक खास दवा बना दी। जब अब्दुल मजीद के हमदर्द दवाखाने की यह शरबत लोगों के बीच प्रसिद्ध होने लगी तो उन्होंने वर्ष 1907 में इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन और मार्केटिंग करना शुरु कर दिया।

इस ठंडक देने वाली शीतल पेय का नाम रखा गया रूह अफज़ा। फिर क्या.. रूह अफज़ा ने हकीम अब्दुल मजीद की पूरी किस्मत ही बदल दी। मजीद पुरानी दिल्ली की कासिम गली से बाहर निकले और उन्होंने इसकी एक फैक्ट्री बनाई जहां इसका बड़ी मात्रा में उत्पादन शुरू कर दिया। उन्होंने हमदर्द लेबोरेटरी के नाम से अपनी इस कंपनी की शुरुआत कर दी। कुछ ही समय में हमदर्द ब्रांड और रूह अफ़ज़ा दोनों बाज़ार और लोगों के बीच प्रसिद्ध हो गए। भारत-पाक विभाजन से पहले ही यह ब्रांड देश के सबसे प्रसिद्ध शरबत पेय के रूप में शुमार हो गया।

1948 में छोटे बेटे ने कराची में शुरू की हमदर्द लेब्रोटरी

1947 में जब देश का बंटवारा होना तय हुआ तो हकीम अब्दुल मजीद के दो बेटों में से बड़ा बेटा तो भारत में रह गया, लेकिन छोटा बेटा कराची चला गया। उन्होंने वहां जाकर 1948 में कराची में हमदर्द लेब्रोटरी की शुरुआत कर दी। यह कंपनी पाकिस्तान में इस ब्रांड से रूह अफ़ज़ा और दूसरे चिकित्सा प्रोडक्ट बनाने लगी। यह कंपनी भी जल्द ही पाकिस्तान के बाज़ार में जम गई और रूह अफज़ा लोगों के बीच खासा लोकप्रिय हो गया। यहीं नहीं यह पाकिस्तान के बड़े ब्रांड्स में शुमार होने लगा।

पाकिस्तान जाकर हमदर्द लेबोरेटरी की शुरुआत करने वाले हकीम अब्दुल मजीद के छोटे बेटे ने बाद में इसकी बांग्लादेश में भी नींव डाल दी। तीनों देशों में बनने वाली रूह अफ़ज़ा का फार्मूला एक ही है। इसी वजह से रूह अफज़ा भारत, पाकिस्तान और बांग्लोदश के मार्केट में खूब बिकता है। हाल में जब रूह अफ़ज़ा भारतीय बाज़ार से पूरी तरह गायब हो गया तो पाकिस्तानी हमदर्द कंपनी की चांदी हो गई। इसके मालिक ने बाक़ायदा एक ट्वीट के जरिए बताया कि हमारे रूह अफ़ज़ा की बाज़ार में अचानक मांग काफ़ी ज्यादा बढ़ गई है। हमारा निर्यात भी तेजी से बढ़ा है। जानकारी के लिए बता दें रूह अफज़ा बनाने वाली कंपनी हमदर्द पाकिस्तान क्रिकेट टीम की ऑफिशियल स्पांसर भी रह चुकी है।

पारिवारिक कलह से बंद हुआ बीच में प्रोडक्शन

इस बात की चर्चा बाज़ार में है कि हमदर्द फाउंडर हकीम हाफिज अब्दुल मजीद के पोते अब्दुल मजीद और उनके चचेरे भाई हामिद अहमद के बीच कंपनी पर नियंत्रण को लेकर जंग छिड़ गई है। हालांकि कंपनी ने इन बातों को नकार दिया है। हमदर्द के मार्केटिंग ऑफिसर और चीफ सेल्स मंसूर अली का इस पर कहना है कि हम कुछ हर्बल सामानों की सप्लाई में कमी का सामना कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि एक सप्ताह के भीतर सप्लाई-डिमांड में अंतर खत्म हो जाएगा। अली ने बताया कि 400 करोड़ के इस ब्रैंड की बिक्री गर्मियों में 25 फीसदी तक बढ़ जाती है। उन्होंने बंटवारे को लेकर कहा कि इस तरह की चर्चा पूरी तरह से निराधार है। यह सब कोरी अफवाह है। अली ने कहा कि हम कई महीनों का कच्चा माल स्टॉक में रखते हैं, लेकिन इस बार कुछ कमी हो गई है। जिन हर्बल्स का हम इस्तेमाल करते हैं वे सामान्य रूप से उपलब्ध नहीं होते हैं।

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कंपनी की ओर से कहा गया है कि वो बाज़ार में सप्लाई बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। वहीं, कंपनी के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि चार महीनों से रूह अफ़ज़ा की सप्लाई में कमी आ रही है। पारिवारिक विवाद की वजह से नवंबर में प्रोडक्शन बंद हो गया था जो अब मध्य अप्रैल में शुरू हुआ है।

Raj Kumar

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