ये हुआ था

‘अज्ञेय’ के बाद हिंदी का सबसे बड़ा स्टेट्समैन कहे गए नामवर सिंह

हिंदी जगत के प्रसिद्ध साहित्यकार और आलोचना के मूर्धन्य हस्ताक्षर प्रोफेसर नामवर सिंह का 19 फरवरी को निधन हो गया। वे पिछले एक महीने से बीमार चल रहे थे। उनका अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में इलाज चल रहा था और पर आखिरी सांस ली। वे 93 वर्ष के थे।

नामवर सिंह की प्रसिद्धि अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित ‘नामवर संग बैठकी’ कार्यक्रम में लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी ने उन्हें अज्ञेय के बाद हिंदी का सबसे बड़ा ‘स्टेट्समैन’ कहा था। उस कार्यक्रम में नामवर सिंह के छोटे भाई काशीनाथ सिंह ने कहा था कि हिंदी आलोचकों में भी ऐसी लोकप्रियता किसी को नहीं मिली जैसी नामवरजी को मिली।

वहीं लेखक गोपेश्वर सिंह ने कहा था, ‘नामवर सिंह ने अपने दौर में देश का सर्वाेच्च हिंदी विभाग जेएनयू में बनवाया, हमने और हमारी पीढ़ी ने नामवरजी के व्यक्तित्व से बहुत कुछ सीखा है’।

नामवर सिंह का जीवन परिचय

नामवर सिंह का जन्म 28 जुलाई, 1926 केा वाराणसी के जीयनपुर गांव में हुआ था। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। हिंदी साहित्य में आलोचना विधा को उन्होंने एक नया आयाम दिया। नामवर सिंह ने बीएचयू, सागर, जोधपुर विश्वविद्यालय एवं जेएनयू में पढ़ाया। दिल्ली में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में भारतीय भाषा केंद्र की स्थापना की और हिंदी साहित्य को और ऊंचाई पर ले गए। अवकाश प्राप्त करने के बाद भी वे उसी विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केन्द्र में इमेरिट्स प्रोफेसर रहे। वे हिन्दी के अतिरिक्त उर्दू एवं संस्कृत भाषा भी जानते थे।

प्रमुख रचनाएं

साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजे जा चुके नामवर सिंह ने ‘छायावाद’, ‘इतिहास और आलोचना’, ‘कहानी नयी कहानी’, ‘कविता के नये प्रतिमान’, ‘दूसरी परम्परा की खोज’ और ‘वाद-विवाद संवाद’ प्रमुख रचनाएं लिखी हैं।

पुरस्कार एवं सम्मान

  • साहित्य अकादमी पुरस्कार 1971 को ‘कविता के नये प्रतिमान’ के लिए मिला था।
  • शलाका सम्मान हिंदी अकादमी, दिल्ली
  • ‘साहित्य भूषण सम्मान’ उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से
  • महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान 2010 में मिला

अध्यापन एवं लेखन के अलावा उन्होंने हिंदी की दो पत्रिकाओं ‘जनयुग’ और ‘आलोचना’ का संपादन भी किया।
1959 में चकिया चन्दौली के लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवारी में चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गए और उन्होंने बीएचयू छोड़ दिया।

Raj Kumar

Leave a Comment

Recent Posts

रोहित शर्मा ने कप्‍तान हार्दिक पांड्या को बाउंड्री पर दौड़ाया।

रोहित शर्मा ने सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ फील्डिंग की सजावट की और कप्‍तान हार्दिक पांड्या…

1 month ago

राजनाथ सिंह ने अग्निवीर स्कीम को लेकर दिया संकेत, सरकार लेगी बड़ा फैसला

अग्निवीर स्कीम को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने…

1 month ago

सुप्रीम कोर्ट का CAA पर रोक लगाने से इनकार, केंद्र सरकार से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) रोक लगाने से इनकार कर दिया…

1 month ago

प्रशांत किशोर ने कि लोकसभा चुनाव पर बड़ी भविष्यवाणी

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बड़ी भविष्यवाणी की है। प्रशांत…

1 month ago

सुधा मूर्ति राज्यसभा के लिए नामित, PM मोदी बोले – आपका स्वागत है….

आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंफोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति…

2 months ago

कोलकाता हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने थामा भाजपा दामन, संदेशखाली पर बोले – महिलाओं के साथ बुरा हुआ है…

कोलकाता हाई के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय भाजपा में शामिल हो गए है। उन्होंने हाल…

2 months ago