ये हुआ था

आदिवासी क्रांतिकारी तिलका मांझी ने शोषक और अंग्रेजों की नींद कर दी थी हराम

अक्सर हम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले शहीद के रूप में मंगल पांडेय को पढ़ते आए हैं, लेकिन उनसे पहले अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल बजाने वाले आदिवासी नायक तिलका मांझी थे। 11 फरवरी को पहले स्वतंत्रता सेनानी और शहीद तिलका मांझी की 273वीं जयंती है। बाबा तिलका ने मंगल पांडे से करीब 80 साल पहले वर्ष 1784 में अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों को संगठित किया। उन्होंने आदिवासियों के संसाधनों को हड़पने और अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन किया था। इस ख़ास अवसर पर जानिए आदिवासियों के भगवान तिलका मांझी के प्रेरणादायी जीवन के बारे में…

तिलका मांझी का जीवन परिचय

महान क्रांतिकारी तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज स्थित ‘तिलकपुर’ गांव के एक संथाल परिवार में हुआ था। उनका मूल नाम ‘जबरा पहाड़िया’ था, उन्हें ब्रिटिश सरकार ने तिलका मांझी नाम दिया। पहाड़िया भाषा में ‘तिलका’ का अर्थ है गुस्सैल और लाल-लाल आंखों वाला व्यक्ति होता है। जबरा अपने गांव के प्रधान भी थे। पहाड़िया समुदाय में ग्राम प्रधान को मांझी कहकर पुकारने की प्रथा है। तिलका नाम उन्हें अंग्रेज़ों ने दिया। अंग्रेज़ों ने जबरा पहाड़िया को खूंखार डाकू और गुस्सैल (तिलका) मांझी (समुदाय प्रमुख) कहा। ब्रिटिशकालीन दस्तावेज़ों में भी ‘जबरा पहाड़िया’ का नाम मौजूद हैं पर ‘तिलका’ का कहीं उल्लेख नहीं है।

बचपन से जंगलों और आदिवासियों पर अत्याचार देखा

तिलका ने बचपन से ही जंगलों की हरियाली और आदिवासियों पर अत्याचार होते हुए देखा था। गरीब आदिवासियों की भूमि, खेती, जंगली वृक्षों पर अंग्रेज़ी शासकों ने कब्जा कर लिया था। अंग्रेजों की नियत आदिवासी इलाकों में मौजूद अपार खनिज संपदा और जंगलों की उपयोगी वस्तुओं पर थी, जिसका आदिवासियों ने शुरू से ही विरोध किया, लेकिन पर्वतीय जमींदार वर्ग अंग्रेज़ी सत्ता का साथ देता था।

अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया और शोषकों से लड़े

आदिवासी नायक तिलका मांझी ने न केवल अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह किया बल्कि, वे देसी दिकुओं यानि शोषकों के खिलाफ भी लड़े। आदिवासियों को जंगल और ज़मीन पर कब्ज़ा करने के लिए अंग्रेज़ों और दिकुओं ने आपस में गठजोड़ कर लिया था। आदिवासी एक साथ दोनों के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। वर्ष 1771 से 1784 तक तिलका ने अंग्रेजी ​हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया। वे अंग्रेजों के आधुनिक हथियारों के सामने परंपरागत शस्त्रों से संघर्ष करते रहे। मांझी ​अंग्रेजों के खिलाफ कभी नहीं झुके। उन्होंने स्थानीय सूदखोरों-ज़मींदारों (दिकुओं) एवं अंग्रेज़ी शासकों को जीते जी कभी चैन की नींद सोने नहीं दिया।

बाद में तिलका को पकड़ लिया गया और आदिवासियों में डर पैदा करने के लिए अंग्रेजों ने उन्हें सबके सामने खुलेआम फांसी दी। अंग्रेजों ने उन्हें 13 जनवरी, 1785 को भागलपुर के चौराहे पर स्थित एक विशाल वटवृक्ष पर सरेआम लटका दिया गया। हजारों लोगों की भीड़ के सामने तिलका मांझी हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। इस तरह वे देश की आजादी के आंदोलन के पहले शहीद हुए।

पहाड़िया समुदाय के पुरखा गीतों और कहानियों में जिक्र

तिलका मांझी के ​बारे में पहाड़िया समुदाय के पुरखा गीतों और कहानियों में उनकी छापामार जीवनी और कहानियां सदियों बाद भी उनके आदि विद्रोही होने का अकाट्य दावा पेश करती हैं। तिलका के नाम पर बिहार के भागलपुर में ‘तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय’ नाम से उच्च शिक्षा संस्थान स्थापित किया गया है। वहीं, झारखंड के दुमका में तिलका की विशाल प्रतिमा लगी हुई है।

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Raj Kumar

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