ये हुआ था

जैनेन्द्र कुमार ने अपना सफल व्यवसाय छोड़ लेखन कला को बनाया था करियर

हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक जैनेन्द्र कुमार की आज 2 जनवरी को 118वीं जयंती है। उन्होंने हिंदी में मनोवैज्ञानिक कहानियां और उपन्यास लेखन किया था। इनमें ‘सुनीता’ और ‘त्यागपत्र’ नामक प्रसिद्ध उपन्यास भी शामिल हैं। जैनेंद्र कुमार को वर्ष 1971 में भारत सरकार ने देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया था। उन्हें उपन्यास ‘मुक्तिबोध’ के लिए वर्ष 1966 का ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ और वर्ष 1979 में ‘साहित्य अकादमी फैलोशिप अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया था। इस खास मौके जानिए मशहूर साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

जैनेंद्र कुमार का जीवन परिचय

जैनेन्द्र कुमार का जन्म 2 जनवरी, 1905 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले कौड़ियागंज में हुआ था। उनके पिता का नाम प्यारेलाल और माता का नाम रामादेवी था। उनके बचपन का नाम आनंदी लाल था। जब वह दो वर्ष के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया था। उनका पालन-पोषण उनके मामा ने किया।

उनके मामा ने हस्तिनापुर में एक गुरुकुल की स्थापना की थी। यहीं पर उनकी प्रारम्भिक शिक्षा संपन्न हुई। बाद में वह पढ़ने के लिए बिजनौर चले गए। वर्ष 1919 में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा पंजाब से उत्तीर्ण की। जैनेन्द्र की उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हुई।

देश की आजादी के लिए लड़े

वर्ष 1921 में उन्होंने पढ़ाई छोड़कर देश की आजादी के लिए हो रहे असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। उन्होंने व्यवसाय करना आरंभ किया लेकिन दो साल बाद उसे छोड़ दिया। वह वर्ष 1923 में नागपुर गए और राजनीतिक पत्रों में संवाददाता के रूप में कार्य करने लगे। इस दौरान उन्हें तीन महीने की कैद हुई। आजीविका की खोज में वह कलकत्ता भी गए।

वर्ष 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया और नमक कानून का विरोध किया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 15 दिन बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। वह यहां से दिल्ली चले गए। जैनेन्द्र कुमार का विवाह वर्ष 1929 में भगवती देवी से हुआ। उनके तीन बेटियां और दो बेटे हुए।

साहित्यिक रचनाएं

जैनेन्द्र कुमार ने अपनी साहित्यिक रचना की शुरुआत ‘फांसी’ कहानी संग्रह से की थी। वर्ष 1929 में उनका पहला उपन्यास ‘परख’ प्रकाशित हुआ। जिस पर इन्हे बाद में साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला। वह प्रेमचंद के संपर्क में आए लेकिन उन्होंने उनके साहित्य का अनुशरण न कर एक नए साहित्यिक रचना की खोज की।

जैनेन्द्र ने व्यक्ति-मन की शंकाओं, प्रश्नों तथा गुत्थियों का अंकन किया है। उन्होंने न केवल पश्चिम की नक़ल पर मनोवैज्ञानिक साहित्य लेखन किया, बल्कि अपनी प्रतिभा के द्वारा नई खोज की, जिससे हिन्दी साहित्य को नई दिशा मिली।

प्रमुख कृतियां

उपन्यास : परख, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, विवर्त, सुखदा, व्यतीत तथा जयवर्धन।

कहानी संग्रह : फाँसी, वातायन, नीलम देश की राजकन्या, एक रात, दो चिड़ियाँ, पाजेब, जयसन्धि तथा जैनेन्द्र की कहानियाँ (सात भाग)।

निबन्ध संग्रह: प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, मंथन, सोच विचार, काम, प्रेम और परिवार, तथा ये और वे।

अनुवादित ग्रंथ-मन्दालिनी, प्रेम में भगवान तथा पाप अरि प्रकाश।

निधन

जैनेन्द्र का 24 दिसंबर, 1988 को निधन हो गया।

Read: श्रीलाल शुक्ल की साहित्य को रूमानी मूर्खताओं से मुक्त करने में रही थी अहम भूमिका

Rakesh Singh

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