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भारत ने बीआरआई में शामिल होने से किया मना, बताया यह कारण

जब वैश्विक शांति और विकास ही आज के दौर के बड़े देशों का विजन है तो फिर निष्पक्ष होकर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाया जाना प्राथमिकता होनी चाहिए। फिर चाहे बात आर्थिक विकास की हो या फिर आतंकवाद पर सहयोग की। कुछ देश ये सब चाहते हुए भी कहीं न कहीं आपसी मतभेद को उजागर करते नजर आते हैं। एक देश के प्रति नफरत भरा नजरिया रखना गलत है, क्योंकि वैश्विक मंच पर कई ऐसे मौके आते हैं जब कोई देश अपने पक्ष को मजबूत रखता है और स्वार्थी लालसा के चलते दूसरे देश उसका विरोध करता है। ऐसा ही कुछ नजारा भारत और चीन के बीच बहुत से अवसरों पर देखने को मिलते हैं।

जहां भारत वैश्विक स्तर पर अपनी स्वच्छ छवि बनाकर चलता है वहीं चीन उसके विपरीत हमारे दुश्मन देश के साथ ज्यादा खड़ा दिखाई देता है। जब वैश्विक स्तर पर आतंक के खिलाफ लड़ने की बात आती है तो राग तो गाता है पर एक आतंकी को बैन करने के मामले में दोगलापन दिखाता है।

पर भारत ने चीन के उस न्यौते को ठुकरा दिया है जिसमें उसने बेल्ट एंड रोड फोरम की अप्रैल महीने होने वाली दूसरी बैठक में शामिल होने के लिए भारत को आधिकारिक निमंत्रण भेजा था। यही नहीं भारत ने यह साहसिक कदम वर्ष 2017 में हुई पहली बैठक में ही दर्ज करवा दिया था।

भारत ने स्पष्ट तौर पर अपने विरोध में कहा है कि चीन की यह योजना उसकी संप्रभुता का उल्लंघन करती है।

चीन की नीति है वह पाकिस्तान के साथ मिलकर चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) बनाई है जो विवादित भूमि क्षेत्र गिलगित-बलिस्तान से होकर गुजरती है। भारत में CPEC के तहत बन रहे ग्वादर बंदरगाह को लेकर भी शंका है। चीन साफ कर चुका है कि वो बंदरगाह के पूरा होने के बाद यहां अपने नौसैनिक तैनात करेगा।

भारत के विरोध के पूर्व चीन को उम्मीद थी कि भारत बीआरआई को लेकर अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगा और इसमें हिस्सा लेगा। विगत सालों में दोनों देशों के संबंधों में आए बदलाव के बाद उसे उम्मीद थी कि भारत इस बार बैठक में शामिल जरूर होगा।

अप्रैल 2018 को वुहान में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अनौपचारिक बैठक हुई थी। जिससे चीन को आश बंधी थी कि भारत इस बैठक में अपना प्रतिनिधि अवश्य भेजेगा।

इस बैठक में भारत की उपस्थिति के लिए चीनी अधिकारियों ने विदेश मंत्रालय को पिछले महीने निमंत्रण भेजा था, लेकिन भारत ने सीपीईसी को लेकर जारी अपनी चिंता को फिर दोहराया। माना जा रहा है कि बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास से पर्यवेक्षक के तौर पर भी कोई इस कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेगा।

यह सही था कि वुहान बैठक के बाद भारत—चीन के बीच रिश्तों में सुधार नजर आया, परंतु चीन के पाकिस्तान मोह ने इन रिश्तों में दरार डाल ने का काम किया। चीन ने जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के रास्ते में अड़ंगा लगाया। जो आतंकी संगठन खुद यह स्वीकार कर चुका है कि उसने 14 फरवरी को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमला किया था। इस घटना में सीआरपीएफ के 40 जवना शहीद हो गए थे, इस आतंकी हमले को अंजाम दिया था आतंकी आदिल अहमद डार ने।

चीन हमेशा ही आतंकवादी अजहर का बचावा किया है। ऐसा चीन ने चौथी बार किया था जब चीन ने अजहर पर लगने वाले बैन के रास्ते को रोका था। चीन के इस कदम ने भारत को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि वह जूनियर लेवल (कनिष्ठ स्तर) पर भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बने या नहीं।

चीन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में राज्य और सरकार के 40 मुखिया हिस्सा लेंगे जिसमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शामिल हैं।

दरअसल में जब से इस परियोजना को चीन ने शुरू किया है तब से ही भारत अपना विरोध जताता रहा है।

भारत सरकार ने बीआरआई में शामिल न होकर एक बार फिर से इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि वह भारत की एकता, अखंडता और संप्रुभता को प्रभावित करने वाले किसी कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनेगा। इसके अलावा चीन की कर्ज देने की नीति का भारत सहित बहुत से विश्लेषक विरोध कर रहे हैं क्योंकि यह एक तरह का औपनिवेशिककरण है।

Rakesh Singh

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