हलचल

कहीं भयंकर सूखा तो कहीं भारी बारिश, क्या इंडिया का मौसम लगातार बदल रहा है?

पिछले कुछ हफ्तों में भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई में असामान्य रूप से गंभीर बारिश देखने को मिल रही है और वहीं देश में अन्य जगहों पर गंभीर सूखे की स्थिति हो रही है। इन चीजों को देखकर सवाल यह उठ रहा है कि मौसम की ये ये चरम घटनाएं क्या अधिक सामान्य हो रही हैं? बाढ़ और सूखे के आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो किसी तरह के पैटर्न का पता लगाया जा सकता है।

सबसे पहले, बारिश

भारत अपनी अधिकांश पानी की जरूरतों के लिए वार्षिक मानसून और भारी बारिश पर निर्भर करता है। देश के विभिन्न इलाकों में बारिश का समय अलग अलग है और मानसून आने में देरी होती है तो किसानों को इससे काफी तकलीफ का सामना करना पड़ता है। वहीं अगर बारिश ज्यादा हो जाए तो उन्हें फसल खराब होने का खतरा हो जाता है।

हाल के दिनों में मुंबई विशेष रूप से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है जिसमें ज्यादा बारिश और बाढ़ के चलते 30 मौतें होने की खबरें सामने आई हैं। शहर के शीर्ष नागरिक अधिकारी का कहना है कि मुंबई का बुनियादी ढांचा अनियमित बारिश के पैटर्न का सामना करने में सक्षम नहीं है।

लेकिन क्या यह किसी तरह का पैटर्न है?

देश भर में मॉनसून वर्षा की निगरानी करने वाले 36 मौसम स्टेशनों के वार्षिक आंकड़ों को देखते हुए, कोई स्पष्ट पैटर्न नहीं उभरता है।

हां, बारिश का स्तर किसी ने पूर्वानुमान नहीं लगाया था लेकिन 2002 के बाद के आंकड़ों में मानसून के चलते बारिश की चरम स्थिति के संकेत नहीं देते।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2006 से 2015 के दशक में 90 गंभीर बाढ़ के साथ लगभग 16,000 लोगों की जान चली गई। इससे पिछले एक दशक में 67 बाढ़ के साथ लगभग 13,600 लोगों की जानें चली गई थी।

बाढ़ में बढ़ोतरी हुई लेकिन इन दो दशकों में बाढ़ की आवृत्ति में एक बड़े बदलाव का संकेत नहीं मिलता।

सूखे की स्थिति क्या है?

मुंबई में जहां भारी बारिश और बाढ़ का सामना करना पड़ा है, देश के अधिकांश हिस्सों को बहुत शुष्क मौसम का सामना करना पड़ रहा है। चेन्नई के दक्षिण-पूर्वी शहर में देरी से हुई बारिश के कारण पानी की भारी कमी हुई है।

भारत भर में हाल ही में हीटवेव भी हुई है जिसमें जून में कई क्षेत्रों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया। कुल मिलाकर, भारत की 44% से अधिक भूमि सूखे के अंदर आती है। पिछले वर्ष की तुलना में यह 10% अधिक है।

तो, क्या ये ऐसे पैटर्न हैं जिन्हें टाइम और डेटा पर हम देख सकते हैं? दो दिनों के लिए एक क्षेत्र का सामान्य तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने पर एक हीटवेव घोषित किया जाता है। 1980 से 1999 तक, 213 हीटवेव थे। 2000 और 2018 के बीच, लगभग 1,400 थे। एक्ट्रीम वेदर को जब लोंग टर्म में देखें तो आंकड़े उतने नहीं हैं।

शोधकर्ताओं के एक अंतरराष्ट्रीय दल द्वारा किए गए एक अध्ययन ने भविष्यवाणी की है कि 2100 तक, भारत की लगभग 70% आबादी ग्लोबल वार्मिंग के कारण अत्यधिक गर्मी और आर्द्रता से खतरों का सामना करना पड़ेगा।

क्या बेहतर योजना से बाढ़ को कम किया जा सकता है?

मुंबई वार्षिक मॉनसून को देखते हुए शहरी योजनाकारों के सामने एक समस्या है। 2005 में मुंबई में बाढ़ के कारण 900 लोगों की मौत हो गई थी तो पानी को पंप करने के लिए आठ स्टेशन बनाने का निर्णय लिया गया था उनमें से दो का निर्माण अभी बाकी है।

शहर का बड़े हिस्से को समुद्र से प्राप्त भूमि पर बनाया गया है और कई लोग बाढ़ की समस्या के लिए गलत योजनाओं को जिम्मेदार ठहराते हैं। ठोस कचरा जमा होने से भी परेशानियां सामने आती हैं।

1993 में शहर की नालियों को ठीक करने की योजना शुरू हुई, लेकिन आलोचकों का कहना है कि उसके लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए।

Neha Chouhan

12 साल का अनुभव, सीखना अब भी जारी, सीधी सोच कोई ​दिखावा नहीं, कथनी नहीं करनी में विश्वास, प्रयोग करने का ज़ज्बा, गलत को गलत कहने की हिम्मत...

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