चन्द्रयान-2

चंद्रयान-2: 2.1 किमी पहले लैंडर ‘विक्रम’ से इसरो का सम्पर्क टूटा

चंद्रयान—2 के प्रक्षेपण से और इसके चांद पर लैंडिंग तक का सफर बेहद उत्साहजनक था, परंतु भारत का यह मिशन इतिहास रचने से चूक गया। इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने संपर्क टूटने का ऐलान करते हुए कहा कि चांद की सतह से 2.1 किमी पहले तक लैंडर ‘विक्रम’ की लैंडिंग प्लानिंग के मुताबिक सामान्य रूप से चल रही थी। लेकिन अंतिम डेढ़ मिनट पहले विक्रम का इसरो के नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट गया। भारत केवल पहला देश नहीं जिसका मिशन सॉफ्ट लैंडिंग में असफल रहा हो। भारत से पहले इन देशों के प्रयास को सफलता नहीं मिली।

यू चला चंद्रयान—2 का रोमांच

यदि चंद्रयान-2 चांद की धरती पर सफलता पूर्वक उतरता तो चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के माध्यम से दक्षिण ध्रुव पर उतरने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन जाता। 6 सितंबर की रात को चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम 1 बजकर 30 मिनट से 2 बजकर 30 मिनट के बीच लैंडिंग करता लेकिन उसका संपर्क इसरो से टूटने के साथ मिशन नाकामयाब रहा।

लैंडर विक्रम के चांद पर उतरने के बाद उसमें मौजूद रोवर प्रज्ञान सुबह 5.30 से 6.30 के बीच बाहर निकलेगा। प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर चहल कदमी कर एक लूनर डे (चांद का एक दिन) में ही कई प्रयोग करेगा। चांद का एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है। वहीं चांद की कक्षा में चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर एक साल तक मिशन पर कार्य करता रहेगा। यदि लैंडर विक्रम चांद पर ऐसी जगह उतरता है जहां 12 डिग्री से ज्यादा की ढलान है तो उसके पलटने का खतरा रहेगा।

चंद्रयान—2 की लैंडिंग के गवाह होंगे पीएम मोदी और 70 बच्चे

इस ऐतिहासिक दिन की उपलब्धियों के प्रत्यक्ष गवाह बनने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं इसरो मुख्यालय में मौजूद रहेंगे। यही नहीं देश के अनेक भागों से स्पेस क्विज जीतने वाले 70 बच्चे और उनके माता-पिता को भी पीएम मोदी के साथ इसरो ने आमंत्रित किया है। भारत से पहले अमेरिका, चीन और रूस भी चांद पर अपने यान भेज चुके हैं।

इसरो के पूर्व प्रमुख जी. माधवन नायर के अनुसार, ‘लैंडर विक्रम ऑन बोर्ड कैमरों की मदद से सही स्थान का चयन करेगा। जब सही जगह मैच हो जाएगी, तो उसमें लगे 5 रॉकेट इंजनों की स्पीड 6 हजार किमी प्रति घंटा से शून्य हो जाएगी। विक्रम नियत स्थान पर कुछ समय हवा में तैरेगा और मंद गति से उतर जाएगा। लैंडर सही जगह उतरे, इसके लिए एल्टिट्यूड सेंसर भी मदद करेंगे।’

इस तरह उतरेगा लैंडर विक्रम

लैंडर विक्रम की लैंडिंग का इसरो ने एक वीडियो यूट्यूब पर शेयर किया है जिसमें बताया गया है कि कैसे विक्रम चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा।

तो आइए जानते हैं विक्रम द लैंडर की खासियत-

चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर 7 सितंबर को उतरेगा। इसरो वैज्ञानिक इसे सॉफ्ट लैंडिंग कह रहे हैं। बता दें कि भारत पहली बार किसी उपग्रह पर अपने किसी यान की सॉफ्ट लैंडिंग कराने जा रहा है। इस वीडियो में लैंडर के नीचे चार पैरों वाले स्टूलनुमा डिजाइन के ऊपर एक बॉक्स के आकार की डिजाइन है। इस बॉक्स में सोने की चमक वाला प्रज्ञान रोवर मौजूद है। इसमें तीन—चार कैमरे हैं। इसके आगे के हिस्से में नीचे की ओर लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा LHDC लगा हुआ है। यह कैमरा लैंडर को चांद पर उरतने से पहले सतह के बारे में जानकारी देगा। जो उसे सॉफ्ट लैंडिंग में मददगार होगी।

एक कैमरा नीचे के हिस्से में LHVC (लैंडर होरिजोंटल वेलोसिटी कैमरा) है। यह कैमरा चांद की सतह के क्षैतिज वेग को भांप सकने की क्षमता रखता है। विक्रम के एक हिस्से मे ऊपरी पर्त में KA-BAND ALTIMETER-1 लगा हुआ है, वहीं दूसरे भाग में LASA यानी लेजर एल्टी मीटर लगा हुआ है। ये दोनों ही वैज्ञानिक उपकरण एक प्रकार के रिमोट सेंसर हैं जो जरूरत के हिसाब से गति को बढ़ाने या घटाने की इजाजत देते हैं। सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान इनका बहुत योगदान होगा।

विक्रम में नीचे की तरफ 800 N लिक्विड इंजिन लगा है। इसके चारों स्टैंड में सबसे नीचे टच डाउन सेंसर लगा हुआ है। इसके दोनों हिस्सों में सोलर पैनल लगे हुए हैं जिसकी मदद से यह खुद ही चार्ज होता है। विक्रम के पीछे की तरफ लैंडर हैजार्ड डिटेक्शन एंड एवाइडेंस (LHDC) कैमरा लगा है, इस कैमरे की मदद से विक्रम को आने वाली मुश्किल से पहले से आगाह कर बचाया जा सकता है। इसमें इसरो ने दिखाया है कि किस तरह चार इंजनों के सहारे ये चांद की सतह पर उतरेगा।

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लैंडर से रोवर 4 घंटे में आएगा बाहर

लैंडर विक्रम के अंदर मौजूद प्रज्ञान रोवर को उससे बाहर आने में 4 घंटे का समय लगेगा। इसकी लैंडर से बाहर आने की रफ्तार प्रति 1 सेंटीमीटर/सेकंड रहेगी। यह चांद की सतह पर 500 मीटर की दूरी तय करेगा। इसके साथ 2 पेलोड जा रहे हैं। जिनका उद्देश्य लैंडिंग साइट के नजदीक तत्वों की मौजूदगी और चांद की चट्टानों-मिट्टी की मौलिक संरचना का पता लगाना होगा। पेलोड के माध्यम से रोवर को जो जानकारी मिलेगी उन्हें लैंडर तक भेजेगा, जिन्हें बाद में लैंडर इसरो तक पहुंचाएगा। यहीं नहीं लैंडर चांद पर भूकंप के आने का भी पता लगाएगा।

वहीं चादं की कक्षा में चक्कर लगा रहा ऑर्बिटर एक साल तक अपनी सेवाएं इसरो को देगा। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी और लैंडर के बीच कम्युनिकेशन स्थापित करना रहेगा। साथ ही यह चांद की सतह का मैप बनाएगा, ताकि चांद के अस्तित्व और विकास का पता लगाया जा सके।

ये देश कर चुके हैं चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग

चांद पर अपने मिशन भेजने में सबसे पहले कोशिश वर्ष 1958 में अमेरिका और सोवियत संघ रूस ने की थी। इस कोशिश के तहत अगस्त से दिसंबर 1968 के बीच अमेरिका ने 4 पायनियर ऑर्बिटर और रूस ने 3 लूना इंपैक्ट भेजे, लेकिन सभी असफल रहे। अब तक चांद पर दुनिया के 6 देशों या एजेंसियों ने सैटेलाइट यान भेजे हैं। कामयाबी सिर्फ 5 को मिली। अभी तक ऐसे 38 प्रयास किए गए, जिनमें से 52% सफल रहे। हालांकि इसरो को चंद्रयान-2 की सफलता का पूरा भरोसा है। माधवन नायर भी कहते हैं कि हम ऐतिहासिक पल के साक्षी होने जा रहे हैं। 100% सफलता मिलेगी।

चंद्रयान-2 की कामयाबी कितनी बड़ी?

अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चांद की सतह पर पहुंचने वाला दुनिया का चौथा देश बनेगा। चंद्रयान-2 दुनिया का पहला ऐसा यान है, जो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। इससे पहले चीन के चांग’ई-4 यान ने दक्षिणी ध्रुव से कुछ दूरी पर लैंडिंग की थी। अब तक यह क्षेत्र वैज्ञानिकों के लिए अनजान बना हुआ है। चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मैग्नीशियम, कैल्शियम और लोहे जैसे खनिजों को खोजने का प्रयास करेगा। वह चांद के वातावरण और इसके इतिहास पर भी डेटा जुटाएगा।

चंद्रयान-2 का सबसे खास मिशन वहां पानी या उसके संकेतों की खोज होगी। अगर चंद्रयान-2 यहां पानी के सबूत खोज पाता है तो यह अंतरिक्ष विज्ञान के लिए एक बड़ा कदम होगा। पानी और ऑक्सीजन की व्यवस्था होगी तो चांद पर बेस कैम्प बनाए जा सकेंगे, जहां चांद से जुड़े शोधकार्य के साथ-साथ अंतरिक्ष से जुड़े अन्य मिशन की तैयारियां भी की जा सकेंगी। अंतरिक्ष एजेंसियां मंगल ग्रह तक पहुंचने के लिए चांद को लॉन्च पैड की तरह इस्तेमाल कर पाएंगी। इसके अलावा यहां पर जो भी मिनरल्स होंगे, उनका भविष्य के मिशन में इस्तेमाल कर सकेंगे।

अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा भी दक्षिणी ध्रुव पर जाने की तैयारी कर रही है। 2024 में नासा चांद के इस हिस्से पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतारेगा। जानकारों का मानना है कि नासा की योजना का बड़ा हिस्सा चंद्रयान-2 की कामयाबी पर टिका है।

चांद का दक्षिणी ध्रुव की स्थिति

चांद के दक्षिणी ध्रुव का तापमान 130 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है, जबकि चांद का जो हिस्सा सूरज के सामने होता है वहां का तापमान 130 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है। अगर यहां पर कोई अंतरिक्ष यात्री खड़ा होगा तो उसे सूरज क्षितिज रेखा पर दिखाई देगा। वह चांद की सतह से लगता हुआ और चमकता नजर आएगा। सूरज की किरणें दक्षिणी ध्रुव पर तिरछी पड़ती हैं। चांद पर हर दिन (पृथ्वी के 14 दिन) तापमान बढ़ता-चढ़ता रहता है, लेकिन दक्षिणी ध्रुव पर तापमान में ज्यादा बदलाव नहीं होता। यही कारण है कि वहां पानी मिलने की संभावना सबसे ज्यादा है।

चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग

इसरो ने चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को शक्तिशाली जीएसएलवी मार्क-III रॉकेट से लॉन्च किया गया था। इस यान के तीन भाग हैं— ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) थे। इसका वजन 3,877 किलो था।

चंद्रयान-1, 2008 में लॉन्च किया

इसरो ने मानवरहित चन्द्रयान (चंद्रयान-1) की लॉन्चिंग 22 अक्टूबर, 2008 को की। यह भारत का पहला अंतरिक्ष यान था। इसने 30 अगस्त, 2009 तक सक्रिय रहा। इस यान को पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (पी एस एल वी) के द्वारा सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपित किया गया। यह चांद पर पांचवें दिन पहुंचा, लेकिन इसे चांद की कक्षा में स्थापित करने में 15 दिन का समय लगा। चंद्रयान ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब (MIP) 14 नवंबर 2008 को चंद्र सतह पर उतरा। इसके साथ ही भारत चंद्रमा पर अपना झंडा फहराने वाला दुनिया का चौथा देश बना।

इस यान का उद्देश्य चांद की सतह का नक्शा और यहां पर मौजूद पानी के अंश और हीलियम गैस की तलाश करना था।

अंतर

चंद्रयान-1 का वजन जहां 1380 किलो था वहीं चंद्रयान—2 उससे करीब तीन गुना ज्यादा है यानी 3877 किलो।

चंद्रयान—2 चांद की सतह पर अपना ‘विक्रम’ मॉड्यूल उतारेगा और 6 पहियों वाले रोवर ‘प्रज्ञान’ को चांद पर फिट कर देगा और इसके जरिए कई वैज्ञानिक परीक्षण किए जाएंगे। जबकि चंद्रयान-1 ऐसा कुछ नहीं था।

अन्य देशों की तुलना में सस्ता है चंद्रयान-2

यान                         लागत
चंद्रयान-2              978 करोड़ रुपए
बेरशीट (इजराइल)  1400 करोड़ रुपए
चांग’ई-4 (चीन)     1200 करोड़ रुपए

Rakesh Singh

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