हलचल

जिन्हें भी लगता है जातिवाद पहले हुआ करता था वो “आर्टिकल 15” जरूर देख लें

आर्टिकल 15 रिलीज हो चुकी है। अनुभव सिन्हा ने इस फिल्म को डायरेक्ट किया है। अनुभव सिन्हा और गौरव सोलंकी ने फिल्म नहीं बल्कि जातिवाद को सही-सही सबके सामने रखा है। फिल्म की जितनी तारीफ की जाए कम है। यह एक साहसिक फिल्म है जो जातिवाद की सच्चाई को लोगों के सामने रखती है।

हम जानते हैं कि देश जाति व्यवस्था के इर्द गिर्द है लेकिन इसकी सच्चाई को देखना नहीं चाहते ऐसे में आर्टिकल 15 जैसी फिल्म चश्में पर लगी उस धूल को साफ करती है। फिल्म में आयुष्मान खुराना ने एक ब्राह्मण IPS अफसर का किरदार निभाया है जो भारत की जाति व्यवस्था के बारे में जानता तो था लेकिन गांवों में इसके जहरीले रूप को देखकर वो अचंभित हो उठता है।

सिनेमा दलित उत्पीड़न पर कुछ काम नहीं कर सका है। आर्टिकल 15 इसी को लेकर हमेशा याद रखी जाएगी। आयुष्मान के किरदार में कई शहरी लोग खुद को देख सकते हैं जो जातिवाद के अत्याचार से वाकिफ नहीं हैं या आज के इस दौर में उसे प्रासंगिक नहीं मानते। शुरू से लेकर आखिर तक फिल्म से आपकी नजरें और आपका जहन इधर से उधर नहीं होता। बदायू कांड के आसपास एक नई कहानी तैयार की गई है और फिल्म में आयुष्मान केस सुलझाने का प्रयास करते दिखते हैं।

फिल्म के टेक्नीकल अप्रोच की बात की जाए तो सिनेमेटोग्राफी ने फिल्म में जान डाल दी है। धुंए के साथ फिल्माए सीन गांव में हुए अत्याचार को बयां करते दिखते हैं। केस के साथ साथ जातिवाद पर फिल्म कड़ा प्रहार करती है। फिल्म में मनोज पाहवा का एक सीन है। छोटा सा डायलोग है। मनोज पाहवा आयुष्मान से कहते हैं “संतुलन मत बिगाड़िए” इस डायलॉग ने मानों बहुत कुछ कह दिया। फिल्म में सभी पुलिस वाले अलग अलग जातियों से आते हैं और उनके बीच एक-एक संवाद इसको लेकर बेहद बारीकी से लिखा गया। उसकी भी तारीफ बनती है।

एक सीन है जो आपके दिमाग से शायद निकल ही ना पाए। उस सीन के लिए डायरेक्टर की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। सीवर में एक इंसान खुद जाता है और वापस उस गंदे पानी से बाहर निकलता है। उस सीन में जैसे जहन सिकुड़ सा जाता है।

फिल्म की कहानी के साथ किरदारों का अभिनय जस्टिस करता है। मनोज पाहवा ने फिल्म मुल्क वाले लेवल को बरकरार रखा है। ऐसी बहुत कम फिल्में होती हैं जहां आप थिएटर से बाहर आकर भी फिल्म से बाहर नहीं आ पाते। आर्टिकल 15 उन्हीं फिल्मों में से एक है।

सिनेमा का एक रचनात्मक पहलू होता है। कमर्शियल होती इन फिल्मों के बीच ऐसी फिल्में ज्यादा जरूरी हो जाती हैं। सयानी गुप्ता की आंखें ही सबकुछ कह जाती हैं। बेहतरीन अभिनय रहा। कुल मिलाकर आर्टिकल 15 सिनेमा के हिसाब से जरूरी फिल्म है। जिशान अयुब का रोल छोटा था लेकिन उनके दिए वॉइस ऑवर कमाल के रहे।

उनके डायलॉग भी आपको खिंचते हैं। आयुष्मान खुराना फिल्म की रीढ़ की हड्डी साबित हुए हैं। एक पल के लिए नहीं लगता कि आयुष्मान ने ऐसा किरदार पहली बार निभाया है। एक तबका है जिसे लगता है जातिवाद अब रहा नहीं है फिल्म देखने के बाद उनकी आंखें खुल सकती हैं। जो लोग दलितों को सिर्फ आरक्षण की नजर से देखते हैं उन्हें ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए।

Neha Chouhan

12 साल का अनुभव, सीखना अब भी जारी, सीधी सोच कोई ​दिखावा नहीं, कथनी नहीं करनी में विश्वास, प्रयोग करने का ज़ज्बा, गलत को गलत कहने की हिम्मत...

Leave a Comment

Recent Posts

रोहित शर्मा ने कप्‍तान हार्दिक पांड्या को बाउंड्री पर दौड़ाया।

रोहित शर्मा ने सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ फील्डिंग की सजावट की और कप्‍तान हार्दिक पांड्या…

1 month ago

राजनाथ सिंह ने अग्निवीर स्कीम को लेकर दिया संकेत, सरकार लेगी बड़ा फैसला

अग्निवीर स्कीम को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने…

1 month ago

सुप्रीम कोर्ट का CAA पर रोक लगाने से इनकार, केंद्र सरकार से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) रोक लगाने से इनकार कर दिया…

2 months ago

प्रशांत किशोर ने कि लोकसभा चुनाव पर बड़ी भविष्यवाणी

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बड़ी भविष्यवाणी की है। प्रशांत…

2 months ago

सुधा मूर्ति राज्यसभा के लिए नामित, PM मोदी बोले – आपका स्वागत है….

आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंफोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति…

2 months ago

कोलकाता हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने थामा भाजपा दामन, संदेशखाली पर बोले – महिलाओं के साथ बुरा हुआ है…

कोलकाता हाई के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय भाजपा में शामिल हो गए है। उन्होंने हाल…

2 months ago