
सिक्ख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले गुरू नानक देव की आज जन्म तिथि है। इसे गुरू पुर्णिमा के नाम से भी बुलाया जाता है। दीवाली के बाद जब भी कार्तिक पुर्णिमा आती है उसी दिन को गुरू पुर्णिमा के रूप में मानाया जाता है। प्रकाश उत्सव के रूप में भी इस दिन की खास भूमिका है।
कैसे मनाई जाती है गुरूनानक जयंती-
गुरूनानक जयंती के दिन गुरू नानक द्वारा दी गई शिक्षाओं को याद किया जाता है। पूरे देश में इस दिन कई तरह के आयोजन भी किए जाते हैं। गुरूनानक जयंती के दिन कई लोग अखंड पाठ भी करते हैं और गुरूनानक को याद करते हैं। 48 घंटो तक इस पाठ को किया जाता है। सिख सामुदाय के लोग इस दिन इकट्ठे होते हैं और उनके द्वारा अपने गांवों कस्बों शहरों में नगर कीर्तन का भी आयोजन किया जाता है। नगर कीर्तन का आयोजन जयंती से ठीक एक दिन पहले किया जाता है।
गुरू नानक देव और उनका जन्म
कार्तिक पुर्णिमा यानि आज ही के दिन गुरू नानक रावी नदी के तट पर बसे एक गांव तलवंडी में हुआ था जो कि फिलहाल पाकिस्तान में है। गुरू नानक बचपन से ही धार्मिक थे।

गुरू नानक को उनके जीवन के लिए जाना जाता है। उन्होंने कभी भी अपने जीवन में सांसारिक सुखों का मोह नहीं रखा। वे हमेशा घूमते रहे। देश दुनिया के कोनों में उपदेश देते रहे और लोगों को अच्छे जीवन के लिए प्रेरित करते रहे।
गुरूनानक अपने उपदेशों के लिए जाने जाते हैं। उनका विवाह 16 साल की उम्र में हुआ था। जब उनके पहले पुत्र का जन्म हुआ तब वे 32 साल के थे। चार साल बाद उनके दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। इसके बावजूद वे कभी भी गृहस्थ जीवन में बने नहीं रह सके। और खुद अपने दोस्तों और शिष्यों मरदाना, बाला, लहना और रामदास के साथ तीर्थ स्थानों पर घूमने निकल पड़े। ये बात सन् 1507 की है। भारत ही नहीं अन्य कई देशों में उन्होंने प्रवचन दिए।