वीपी सिंह ने भूदान आंदोलन में लोगों की सहभागिता बढ़ाने के लिए अपनी जमीनें भी कर दी थी दान

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भारत के 8वें प्रधानमंत्री वीपी सिंह (विश्वनाथ प्रताप सिंह) की 25 जून को 91वीं जयंती है। सिंह वर्ष 1989 से 1990 तक देश के प्रधानमंत्री रहे थे। वीपी सिंह बेहद ईमानदार नेता थे। साथ ही दलित पिछड़ों और वंचित समुदायों के लोगों के प्रति उनके हृदय में करुणा थी। इसके लिए उन्होंने अपने कार्यकाल में पिछड़ी जातियों के लिए मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की। वह उत्तरप्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे थे। इस खास मौके पर जानिए उनके जीवन के बारे में…

विश्वनाथ प्रताप सिंह का जीवन परिचय

वी पी सिंह का जन्म 25 जून, 1931 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले की डैया रियासत में हुआ था। जब वह पांच वर्ष के थे तब उन्हें मांडा रियासत के राजा गोपाल सिंह ने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया। वह वर्ष 1941 में मात्र 10 वर्ष की आयु में मांडा के शासक बने। उनकी शिक्षा कर्नल ब्राउन कैम्ब्रिज स्कूल, देहरादून में हुई थी। बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कला में स्नातक और कानून की डिग्री हासिल की। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के उपाध्यक्ष चुने गए। बाद में पुणे विश्वविद्यालय के फर्ग्यूसन कॉलेज से भौतिकी विज्ञान में स्नातक किया।

उनकी शादी 25 जून, 1955 को सीता कुमारी के साथ हुआ था। इनके दो बेटे हैं। उन्होंने वर्ष 1957 में चले भूदान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी और इस आंदोलन में लोगों की सहभागिता बढ़ाने के लिए उन्होंने खुद भी जमीनें दान दे दीं। इस दौरान उनका पारिवारिक विवाद भी चला, जो बाद में न्यायालय में तक पहुंच गया। वह इलाहाबाद की अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के अधिशासी प्रकोष्ठ के सदस्य भी रहे।

वी पी सिंह का राजनीतिक सफर

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने वर्ष 1969 से राजनीति में कदम रखा और वह भारतीय कांग्रेस पार्टी के साथ जुड़ गए। वह वर्ष 1969-1971 में उत्तर प्रदेश की सोरांव विधानसभा से चुने गए। वी पी सिंह वर्ष 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में चुने गए और वर्ष 1974 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा  उप-वाणिज्य मंत्री नियुक्त किया गया। वर्ष 1976-77 में उन्हें वाणिज्य मंत्री बनाया गया।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने

वी पी सिंह 9 जून, 1980 से 28 जून, 1982 तक उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर रहे थे। इस दौरान उन्होंने राज्य में डकैती के खिलाफ कठोर कार्रवाई की।

वित्त मंत्री के रूप में कार्य

विश्वनाथ प्रताप सिंह राज्यसभा के भी सदस्य बने थे। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब उन्हें 31 दिसम्बर, 1984 को वित्त मंत्री के पद पर नियुक्त किया गया था। उन्होंने लाइसेंस राज (सरकारी विनियमन) में क्रमिक छूट दी। उनके कार्यकाल में सोने पर कर कम करके उसकी तस्करी को कम किया और जब्त सोने में पुलिस का हिस्सा तय किया। उन पर टैक्स चोरी पर नकेल कसी।

इस दौरान पीएम राजीव गांधी के साथ उनका टकराव भी हुआ। उन्हें इस बात की खबर मिली की कई भारतीयों ने विदेशों में बैंकों में धन जमा करवाया है। इस पर उन्होंने ऐसे भारतीयों का पता लगाने के लिए अमेरिकी जासूस संस्था से सहयोग लिया। इसी बीच स्वीडन ने 16 अप्रैल, 1987 को यह समाचार प्रसारित करवाया कि भारत के बोफोर्स कंपनी की 410 तोपों का सौदा हुआ था, उसमें 60 करोड़ की राशि कमीशन के तौर पर दी गई थी।

प्रधानमंत्री के रूप में वी पी सिंह

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 2 दिसंबर, 1989 से 10 नवंबर, 1990 तक करीब एक साल प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वह व्यक्तिगत तौर पर स्वच्छ छवि वाले नेता थे। उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशों को मानकर देश में वंचित समुदायों की सत्ता में हिस्सेदारी पर मोहर लगा दी।

निधन

वी पी सिंह का निधन 77 वर्ष की अवस्था में 27 नवम्बर, 2008 को दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल में हुआ।

निर्दलीय चुने जाने वाले देश के एकमात्र राष्ट्रपति थे वी. वी. गिरि, स्वतंत्रता आंदोलन का भी रहे हिस्सा

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