‘खूब लड़ी मर्दानी’ कविता लिखने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान खुद भी थी क्रांतिकारी महिला

Views : 11407  |  4 minutes read
Subhadra-Kumari-Chauhan-Bio

हम सभी ने बचपन में ‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसीवाली रानी थी…’ कविता को खूब पढ़ा और सुना है। इस प्रसिद्ध कविता की लेखिका व कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की आज 16 अगस्त को 119वीं जयंती है। सुभद्रा देश-प्रेम से ओत-प्रोत व राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करने और भारतीय स्वतंत्रता में भाग लेने वाली कवयित्री रहीं। इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएं सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कविता और कहानियों में भी व्यक्त किया। सुभद्रा पहली सत्याग्रही महिला थी, जिन्हें नागपुर में कोर्ट अरेस्ट किया गया। वो सेंट्रल प्रोविंस से विधानसभा की भी सदस्य रहीं। इस खास अवसर पर जानिए हिंदी की मशहूर लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान के बारे में…

सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय

कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त, 1904 को उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद स्थित निहालपुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह था। सुभद्रा की काव्य प्रतिभा बचपन से ही सामने आ गई थी। उनका विद्यार्थी जीवन प्रयाग में ही बीता। ‘क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज’ में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की। सुभद्रा चार बहनें और दो भाई थे। उनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा के प्रेमी थे और उन्हीं की देख-रेख में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी हुई। वर्ष 1913 में नौ वर्ष की आयु में सुभद्रा की पहली कविता प्रयाग से निकलने वाली पत्रिका ‘मर्यादा’ में प्रकाशित हुई थी। यह कविता ‘सुभद्राकुंवरि’ के नाम से छपीं। कविता ‘नीम’ के पेड़ पर लिखी गई थी।

बचपन में प्रथम आने पर मिलता था इनाम

सुभद्रा बचपन से ही चंचल और कुशाग्र बुद्धि थी। पढ़ाई में प्रथम आने पर उनको इनाम मिलता था। सुभद्रा को कविता के लिए कभी अलग से समय की जरूरत नहीं होती थी। वे अपनी रचना स्कूल से घर आते-जाते समय तांगे में ही लिख लेती, इस तरह कविता की रचना करने के कारण से स्कूल में उनकी बड़ी प्रसिद्धि थी। प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा उनकी बचपन की सहेली थीं। दोनों का साथ लंबे समय तक बना रहा। सुभद्रा की पढ़ाई हालांकि नौवीं कक्षा के बाद ही छूट गई, लेकिन उनके साहित्य की गहराई से यह अभाव जरा भी नहीं खटकता। वर्ष 1919 में उनका विवाह ‘ठाकुर लक्ष्मण सिंह’ से हुआ, विवाह के पश्चात वे जबलपुर में रहने लगीं।

Subhadra-Kumari-Chauhan

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गई जेल

देश की आजादी के लिए वे कांग्रेस की सदस्य बनी और महात्मा गांधी की लाडली रहीं। जबलपुर में वर्ष 1922 का ‘झंडा सत्याग्रह’ देश का ऐसा पहला सत्याग्रह था, जिसमें सुभद्रा पहली महिला सत्याग्रही थीं। रोज़-रोज़ सभाएं होती थीं और जिनमें सुभद्रा भी बोलती थीं। वे दो बार जेल भी गई थीं। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के संवाददाता ने अपनी एक रिपोर्ट में उनका उल्लेख लोकल सरोजिनी कहकर किया था। सुभद्रा जी में बड़े सहज ढंग से गंभीरता और चंचलता का अद्भुत संयोग था। वे जिस सहजता से देश की पहली स्त्री सत्याग्रही बनकर जेल जा सकती थीं, उसी तरह अपने घर में, बाल-बच्चों में और गृहस्थी के छोटे-मोटे कामों में भी रमी रह सकती थीं।

रचनाओं में झलकता था उनका स्वभाव

सुभद्रा की जीवनी, इनकी पुत्री, सुधा चौहान ने ‘मिला तेज से तेज’ नामक पुस्तक में लिखी है। सुभद्रा बचपन से ही निडर, साहसी, विद्रोही और वीरांगना थीं। उनकी रचनाओं से उनके स्वभाव की झलक देखी जा सकती है। उन्होंने लगभग 88 कविताओं और 46 कहानियों की रचना की, जिसमें अशिक्षा, अंधविश्वास, जातिप्रथा आदि रूढ़ियों पर प्रहार किया गया है। ‘झांसी की रानी’ उनकी सदाबहार रचना है, जो आज भी स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल है और जल्दी ही बच्चे उससे स्वयं को जोड़ लेते हैं। ‘बिखरे मोती’, ‘उन्मादिनी’ और ‘सीधे-सादे चित्र’ उनके तीन लोकप्रिय कहानी-संग्रह हैं।

कवयित्री सुभद्रा चौहान का निधन

हिंदी की मशहूर लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान का निधन 44 वर्ष की अल्पायु में 15 फरवरी, 1948 को कार द्वारा नागपुर से जबलपुर लौटते समय एक सड़क दुर्घटना में हुआ।

साहित्य में योगदान

उनका पहला काव्य-संग्रह ‘मुकुल’ 1930 में प्रकाशित हुआ। इनकी चुनी हुई कविताएँ चित्रारा में प्रकाशित हुई हैं।

कविता — अनोखा दान, आराधना, इसका रोना, उपेक्षा, उल्लास, कलह-कारण, कोयल, खिलौनेवाला, चलते समय, चिंता, जीवन-फूल, झाँसी की रानी की समाधि पर, झांसी की रानी, झिलमिल तारे, ठुकरा दो या प्यार करो, तुम, नीम, परिचय, पानी और धूप, पूछो, प्रतीक्षा, प्रथम दर्शन, प्रभु तुम मेरे मन की जानो, प्रियतम से, फूल के प्रति, बिदाई, भ्रम, मधुमय प्याली, मुरझाया फूल, मेरा गीत, मेरा जीवन, मेरा नया बचपन, मेरी टेक, मेरे पथिक, यह कदम्ब का पेड़, यह कदम्ब का पेड़-2, विजयी मयूर, विदा, वीरों का हो कैसा वसन्त, वेदना, व्याकुल चाह, समर्पण, साध, स्वदेश के प्रति, जलियाँवाला बाग में बसंत। सुभद्रा की कविताओं में राष्ट्रचेतना व ओज कूट-कूट कर भरा है।

Subhadra-Kumari-Chauhan

सहज सरल भाषा में लिखने का था हुनर

हिंदी काव्य जगत में सुभद्रा कुमारी चौहान अकेली ऐसी कवयित्री हैं, जिन्होंने अपने कंठ की पुकार से लाखों युवक-युवतियों को युग-युग की अकर्मण्य उदासी को त्याग, स्वतंत्रता संग्राम में अपने को समर्पित कर देने के लिए प्रेरित किया है। सहज सरल भाषा में जटिल से जटिल भावों को पिरोकर पाठक के मन में उत्साह जगा देती हैं।

बुंदेलखंड में लोक-शैली में गाये जाने वाले छंद को लेकर उसी में झांसी की रानी जैसी रोमांचक कविता लिखना उनकी प्रतिभा और दृष्टि दोनों का परिचय देता है। यद्यपि उनकी इस रचना को अँग्रेजों ने जब्त कर लिया था, तथापि भारतीय जन-जन को यह कविता कंठस्थ हो गयी थी। एक प्रसिद्ध कवयित्री के रूप में सुभद्रा जी की काव्य साधना के पीछे उत्कृष्ट देश प्रेम, अपूर्व साहस तथा आत्मोत्सर्ग की प्रबल कामना है। इनकी कविता में सच्ची वीरांगना का ओज और शौर्य प्रकट हुआ है।

Subhadra-Kumari-Chauhan

‘झांसी की रानी………’

  • सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
    बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
    गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
    दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
    चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

 

  • कानपूर के नाना की, मुंहबोली बहन छबीली थी,
    लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
    नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,
    बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
    वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।

Read: प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जबलपुर की सड़कों पर खुद ही बेचा करते थे अपनी पत्रिका

COMMENT