जन्मदिन: जयप्रकाश नारायण के समाजवादी आंदोलन से काफी प्रभावित थे यशवंत सिन्हा

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पूर्व सिविल सेवा अधिकारी व राजनेता यशवंत सिन्हा आज अपना 86वां जन्मदिन मना रहे हैं। एक समय सिन्हा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते थे। लेकिन उन्होंने ​भाजपा छोड़ने के बाद मार्च 2021 में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का दामन थाम लिया। सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त व विदेश मंत्री रहे थे। वह उन नौकरशाहों में शामिल हैं, जो नौकरशाह से राजनेता बने हैं। उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था का परिवर्तक भी माना जाता है। भारत-फ्रांस संबंधों में उनके योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2015 में फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘लीजन ऑफ़ ऑनर’ से नवाज़ा गया। इस खास अवसर पर जानिए यशवंत सिन्हा की अब तक की जीवन यात्रा के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

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यशवंत सिन्हा का जीवन परिचय

पूर्व भारतीय नौकरशाह यशवंत सिन्हा का जन्म 15 जनवरी, 1937 को बिहार के पटना में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी स्कूली शिक्षा पटना में ही हुईं। उन्होंने वर्ष 1958 में राजनीति शास्त्र से मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद सिन्हा ने वर्ष 1960 तक पटना विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र विषय में अध्यापन का कार्य किया। वर्ष 1960 में उनका चयन भारतीय सिविल सेवा में हुआ।

सिन्हा ने 24 साल तक कई महत्वपूर्ण पदों पर रहकर अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने 4 वर्षों तक बतौर उप-विभागीय मजिस्ट्रेट और जिला मजिस्ट्रेट के रूप में अपनी सेवाएं दी। इसके बाद उन्हें 2 वर्ष के लिए बिहार सरकार के वित्त विभाग में अवर सचिव और उप-सचिव की जिम्मेदारी सौंपी। बाद में उन्होंने वाणिज्य मंत्रालय में भारत सरकार के उप-सचिव के रूप में काम किया।

जर्मनी (बॉन) में भारतीय दूतावास में पहले सचिव हुए नियुक्त

यशवंत सिन्हा वर्ष 1971 से 1973 तक जर्मनी के बॉन स्थित भारतीय दूतावास में पहले सचिव (वाणिज्यिक) नियुक्त किए गए थे। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1973 से 1974 तक फ्रैंकफर्ट में भारत के महावाणिज्यदूत के पद पर कार्य किया। इस दौरान भारत का विदेश व्यापार और यूरोपीय संघ से रिश्तों में सुधार हुआ। वर्ष 1980-84 के दौरान उन्हें भारत सरकार ने भूतल परिवहन मंत्रालय में संयुक्त सचिव पद की जिम्मेदारी सौंपी। साथ ही पोत परिवहन, बंदरगाह व सड़क परिवहन से संबंधित कार्यों की जिम्मेदारी भी दी गईं। सिन्हा 70 के दशक में जयप्रकाश नारायण के समाजवादी आंदोलन से काफी प्रभावित हुए।

सिविल सेवा से इस्तीफा देकर राजनीति में उतरे

वर्ष 1984 में यशवंत सिन्हा ने सिविल सेवा से इस्तीफा दे दिया और भारतीय राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने सबसे पहले जनता पार्टी की सदस्यता लीं। वर्ष 1986 में उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया। वह वर्ष 1988 में राज्यसभा सदस्य चुने गए। सिन्हा वर्ष 1990-1991 के काल में चंद्रशेखर सरकार में वित्त मंत्री बने। बाद में वह जून, 1996 में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाए गए। इसके बाद उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मार्च 1998 से मई, 2002 तक वित्त मंत्री के पद पर कार्य किया।

यशवंत सिन्हा ने 1 जुलाई, 2002 को विदेश मंत्री के रूप में शपथ ली थी। वर्ष 2004 के आम चुनावों में वह अपने चुनाव क्षेत्र हजारीबाग से चुनाव हार गए। हालांकि, वर्ष 2005 में वह फिर से संसद पहुंचे। 13 जून, 2009 को सिन्हा ने भाजपा के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

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सिन्हा का भारतीय राजनीति में योगदान

वित्त मंत्री के पद पर रहते हुए यशवंत सिन्हा ने कुछ नीतियों व प्रस्तावों को खारिज किया था, जिसके बाद उनकी आलोचना भी हुईं। लेकिन उनके द्वारा किए गए आर्थिक सुधारों से भारतीय अर्थव्यवस्था को सही दिशा मिलीं। इनमें ब्याज दरों में कटौती, बंधक ब्याज कर कटौती की शुरुआत, दूरसंचार क्षेत्र को मुक्त करना, पेट्रोलियम व्यवसाय को नियंत्रण मुक्त करना और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को निधि देने में मदद करना आदि प्रमुख हैं।

आपको भले ही जानकारी हैरानी हो लेकिन यशवंत सिन्हा ने ब्रिटिश काल की 53 वर्षों से चली आ रही शाम 5 बजे भारतीय बजट पेश करने की परंपरा को तोड़ा था। सिन्हा को अंतरराष्ट्रीय संबंधों में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है। उन्होंने अपने वित्त मंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान अनुभवों के विषय में एक किताब भी लिखीं, जिसका शीर्षक है ‘कॉन्फेशन ऑफ़ अ स्वदेशी’।

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विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में चुने गए

यशवंत सिन्हा साल 2021 में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी टीएमसी के उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए। उन्हें वर्ष 2022 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में सर्वसम्मति से चुना गया, जिससे वह राष्ट्रपति पद के लिए नामांकित होने वाले पहले एआईटीसी नेता बन गए।

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