मदन मोहन मालवीय ने हिंदुओं में आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने का किया था प्रयास

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देश की आज़ादी के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ‘बीएचयू’ के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की आज 160वीं जयंती है। वह एक प्रसिद्ध शिक्षाविद, वकील और राजनीतिज्ञ थे। पंडित मालवीय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष रहे थे। उन्हें सम्मान से ‘महामना’ भी पुकारा जाता है। पं. मालवीय को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ साल 2014 में उनकी 153वीं जयंती के अवसर पर प्रदान किया गया। उन्होंने हिंदुओं में आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने का प्रयास किया था। वह वर्ष 1919 से वर्ष 1938 तक बीएचयू के कुल​पति भी रहे थे। इस खास मौके पर जानिए उनके प्रेरणादायक जीवन के बारे में…

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मदन मोहन मालवीय का जीवन परिचय

पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर, 1861 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित बैजनाथ और माता मून देवी मालवीय था। उनका मूल उपनाम चतुर्वेदी था। उनके पूर्वज मालवा से आकर इलाहाबाद आकर बस गए थे। इस वजह से उन्होंने अपना सरनेम मालवीय लगाया। उनके पिता संस्कृत शास्त्रों के विद्वान थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत में पाठशाला में हुई थी। बाद में उन्होंने एक अंग्रेजी स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। पंडित मालवीय ने बचपन में ‘मकरंद’ नाम से कविताएं लेखन शुरू किया था।

महामना ने वर्ष 1879 में मुइर सेंट्रल कॉलेज से मैट्रिक उत्तीर्ण की। उन्हें हैरिसन कॉलेज के प्रधानाचार्य ने मासिक छात्रवृत्ति प्रदान कीं, जिससे उनको आर्थिक सहायता मिलीं। पंडित मालवीय ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक किया था। वह संस्कृत से मास्टर डिग्री हासिल करना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। बाद में वर्ष 1884 में उन्होंने इलाहाबाद के सरकारी हाई स्कूल में सहायक मास्टर के रूप में पढ़ाना शुरू कर दिया।

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मालवीय का देश की आजादी में योगदान

मदन मोहन मालवीय ने दिसंबर, 1886 में द्वितीय कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया। यही से उनका राजनीतिक कॅरियर शुरू हुआ। उन्होंने जुलाई 1887 में स्कूल की नौकरी छोड़ दी और हिंदुस्तान का संपादक बन गए। बाद में एलएलबी करने के लिए इलाहाबाद गए और साथ में यहां पर उन्हें इंडियन ओपिनियन का सह-संपादक बनाया गया। उन्होंने कानून की डिग्री लेने के बाद वर्ष 1891 में इलाहाबाद जिला न्यायालय में कानून का अभ्यास शुरू किया। मालवीय वर्ष 1909, 1918, 1932 और 1933 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। वह एक उदारवादी नेता थे। उन्हें महात्मा गांधी द्वारा ‘महामना’ की उपाधि प्रदान की गई थी।

मालवीय ने ‘अभ्युदय’ का भी संपादन किया था। उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द्र को बढ़ावा देने के लिए लाहौर और कानपुर में भाषण दिए थे। हिंदू महासभा के प्रारंभिक नेताओं में से एक पंडित मालवीय समाज सुधारक और सफल सांसद थे। उन्होंने वर्ष 1915 में ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ की स्थापना की थी।

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नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में हुए गिरफ्तार

महामना मदन मोहन मालवीय ने असहयोग आंदोलन के दौरान चौरी-चौरा घटना में गिरफ्तार क्रांतिकारियों का मुकदमा लड़ा। उस समय वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत कर रहे थे। उन्होंने 153 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा से बचाया था। मालवीय ने अंग्रेजी समाचार पत्र ‘द लीडर’ का प्रकाशन वर्ष 1909 में इलाहाबाद से किया। वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया और अपनी गिरफ्तारी दीं।

पंडित मालवीय इलाहाबाद नगरपालिका बोर्ड में भी सक्रिय रहे। वह वर्ष 1903-1918 के दौरान प्रॉविन्शियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य थे। मालवीय सेंट्रल काउंसिल में वर्ष 1916-1918 के दौरान इंडियन लेजिस्लेटिव असेंबली के निर्वाचित सदस्य रहे। उन्होंने वर्ष 1931 में हुए दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था। मालवीय ने वर्ष 1937 में सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया और इसके बाद अपना पूरा ध्यान सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित कर दिया था। उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन और बाल विवाह का विरोध करने के साथ ही महिलाओं की शिक्षा के लिए काम किया।

पंडित एमएम मालवीय का निधन

भारतीय विद्वान, शिक्षा सुधारक, राजनेता व स्वतंत्रता सेनानी पंडित मदन मोहन मालवीय का निधन 12 नवंबर, 1946 को वाराणसी में 85 साल की उम्र में हुआ।

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