
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना अमूल्य योगदान देने वाली और भारतीय क्रांति की जननी के नाम से मशहूर भीकाजी रुस्तम कामा की 24 सितंबर को 158वीं बर्थ एनिवर्सरी हैं। उन्हें मैडम कामा के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने विदेशों में रहकर भारत की आजादी की अलख जगाई और वहां के बौद्धिक वर्ग को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उनकी लूट, शोषण और दमनकारी नीतियों से अवगत कराया। उन्होंने जर्मनी के स्टटगार्ट शहर में 22 अगस्त, 1907 में सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस के दौरान भारतीय झण्डा फहराया था।
मैडम कामा का जन्म 24 सितम्बर, 1861 को महाराष्ट्र के बम्बई में एक सम्पन्न पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता सोराबजी पटेल मशहूर व्यापारी थे और उनके नौ संतानें थी। भीकाजी का लालन-पालन और शिक्षा पाश्चात्य परिवेश में हुई। फिर भी उनके हृदय में भारत माता की स्वतंतत्र कराने का जज्बा बचपन से ही था।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा एलेक्जेंड्रा नेटिव गर्ल्स संस्थान में संपन्न हुईं। वह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि वाली और संवेदनशील थीं और ज्यादातर ब्रिटिश हुकूमत के विरूद्ध चलने वाली स्वतंत्रता की गतिविधियों में शामिल होती थी। उन्होंने पारसी समाज सुधारक रुस्तमजी कामा के साथ 3 अगस्त, 1885 में कर लिया था। उनके एक बेटा था।
देश की आजादी के लिए लड़ाई में योगदान
भीकाजी दिसंबर, 1885 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की सदस्य बनी। उन्होंने जाति-पाति, ऊँच नीच, धर्म आदि के भेदभाव से ऊपर उठकर सभी वर्गों की महिलाओं को एक मंच पर लाने का कार्य किया। उनके देशप्रेम के कारण उन्हें परिवार वालों का विरोध सहना पड़ा।
बंबई में वर्ष 1896 को जब प्लेग ने महामारी का रूप ले लिया तो मैडम कामा ने भी मरीजों की सेवा की। इस दौरान वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गई थी। वह अपना इलाज करवाने वर्ष 1902 में यूरोप चली गई। इस दौरान जर्मनी, स्कॉटलैंड और फ्रांस होते हुए वह वर्ष 1906 में लंदन पहुंच गई। जहां पर उनकी मुलाकात दादा भाई नौरोजी से हुई। उन्होंने दादाभाई की निजी सचिव रूप कार्य किया। श्यामजी कृष्ण वर्मा, लाला हरदयाल और वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारियों से हुई। इन क्रांतिकारियों में से भीकाजी सबसे अधिक श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा के विचारों और भाषणों से प्रभावित हुई।
भीकाजी जब फ्रांस में थी तो उनकी ब्रिटिश हुकूमत विरोधी गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनको वापस बुलाने की मांग की थी। परंतु वहां की सरकार ने इसे खारिज कर दिया था। जिससे ब्रिटिश सरकार ने उनकी संपत्ति को जब्त कर लिया और उनके भारत आने पर पाबंदी लगा दी। भीकाजी को उनके सहयोगी उन्हें भारतीय क्रांति की जननी मानते थे।
भारतीय झंडे का डिजाइन बनाया
मैडम भीकाजी ने लंदन प्रवास के दौरान भारतीय क्रांतिकारियों के साथ मिलकर वर्ष 1905 में भारत के झंडे का पहला डिजाइन तैयार किया। भीकाजी ने पहला झंडा खुद ने फहराया था। इस झंडे में देश के विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति को संजोया गया था। इसके पहले प्रारूप में हरा, लाल एवं केसरिया तीन रंगों की पट्टियों का इस्तेमाल किया गया था। इसमें सबसे ऊपर लाल रंग की पट्टी थी, जिसमें आठ खिले हुए कमल तत्कालीन भारत के आठ प्रदेशों के प्रतीक थे। बीच में केसरी रंग की पट्टी में देवनागरी में ‘वन्दे मातरम’ लिखा था नीचे की हरी पट्टी पर दायीं ओर अर्द्ध चन्द्र तथा बाईं ओर उगता हुआ सूरज दिखाया गया था। इस झंडे को सबसे पहले बर्लिन में और बाद में 1909 में बंगाल में फहराया गया था।
भीकाजी कामा ने भारतीय जनता का ब्रिटिश सरकार द्वारा हो रहे शोषण और दमन के खिलाफ विदेशों में खूब प्रचार किया। वह इसके लिए न्यूयार्क भी गई और वहां की मीडिया के समक्ष भारतीय जनता की दुर्दशा का विवरण दिया। उन्होंने अपने भाषणों में अमरीका के लोगों से कहा-‘आप आयरलैंड और रूसी जनता का संघर्ष से भती प्रकार से परिचित हैं, भारतीयों के संघर्ष के बारे में भी जानकारी रखिए।’
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निधन
विदेशों में रहकर भारतीय आजादी के लिए संषर्घ करने वाली मैडम भीकाजी कामा का निधन 13 अगस्त, 1936 को मुंबई के पारसी जनरल अस्पताल में हुआ। उनकी मृत्यु के समय आखिरी शब्द ‘वंदे मातरम’ थे।
मैडम भीकाजी कामा को सम्मान देने के लिए भारत में कई स्थानों और सड़कों का नाम उनके नाम पर रखा गया है और 26 जनवरी, 1962 को उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया।