रिकी पोंटिंग को अपने मेंटर की अंतिम यात्रा में शामिल न होने का आजतक भी है दुख

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ऑस्ट्रेलिया की लगातार दो विश्वकप जीताने वाले दिग्गज खिलाड़ी व पूर्व कप्तान रिकी पोंटिंग ​आज अपना 49वां जन्मदिन मना रहे हैं। वैसे तो ये खिलाड़ी किसी परिचय का मोहताज नहीं है, लेकिन इन्हें मॉर्डन क्रिकेट के हाई एंड स्टाइलिश बल्लेबाज का दर्जा हासिल हैं, जिनके कप्तान रहते हुए ऑस्ट्रेलिया ने दुनियाभर में अपनी विजयी पताका लहराईं। ऑस्ट्रेलिया के एक छोटे से शहर तस्मानिया में पैदा हुए रिकी पोंटिंग ने ऑस्ट्रेलिया के लिए सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय रन बनाए हैं। वो ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट इतिहास के अबतक के सबसे कामयाब कप्तान रहे हैं। इस ख़ास अवसर पर जानिए रिकी पोंटिंग की जिंदगी के कुछ अनसुने पहलुओं के बारे में…

स्पोर्ट्स से विशेष संबंध रखती है पोंटिंग फैमिली

तीन भाई बहनों में रिकी सबसे बड़े है, जहां उनके माता पिता ग्रीम और लॉरेन अलग-अलग खेलों के चैंपियन थे। रिकी के पिता ग्रीम पोंटिंग अपने जमाने में गोल्फर रहे थे जिसके बाद वो घरेलू स्तर पर क्रिकेट और फुटबॉल में भी हाथ आजमा चुके हैं। पॉन्टिंग की मां लॉरेन क्रिकेट और बैडमिंटन के मिश्रण वाले खेल विगोरो में तस्मानिया की ओर से खेल चुकी हैं, वहीं वो बैडमिंटन और नेटबॉल की भी काफी अच्छी खिलाड़ी रह चुकी हैं। रिकी के छोटे भाई भी उनकी तरह क्रिकेट में घरेलू स्तर पर खेल चुके हैं।

स्कोरर के रूप में पहली कमाई

एक मिडिल क्लास फैमिली से नाता रखने वाले रिकी पोंटिंग को उनके जीवन की पहली कमाई स्कोरर के रूप में मिली थी। रिकी ने ऑस्ट्रेलिया की घरेलू क्रिकेट स्पर्धा शैफील्ड शील्ड ट्रॉफी में स्कोरिंग किया करते थे, जिसके लिए उन्हें 20 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर मिलते थे।

पिता के साथ खेल चुके हैं मैच

पॉन्टिंग ने शुरूआती दौर में अपना ज्यादातर क्रिकेट तस्मानिया के मोवब्रे क्रिकेट क्लब से खेला है। एक बार क्लब मैच में रिकी पोंटिंग के पिता ग्रीम भी उस टीम का हिस्सा थे, जिस टीम में उनका बेटा खेल रहा था। संयोगवश दोनों पिता पुत्र को क्रीज शेयर करने का मौका मिला, लेकिन ये जोड़ी ज्यादा देर तक मैदान में नहीं टिक पाई और एक आक्रामक शॉट खेलते हुए सीनियर पोंटिंग आउट हो गए।

क्रिकेट के लिए छोड़ दिया स्कूल और फुटबॉल

पोंटिंग ने 15 वर्ष की उम्र तक काफी फुटबॉल खेली थी, मगर चोट लग जाने के बाद उन्होनें फुटबॉल खेलना छोड़ दिया और अपना सारा ध्यान क्रिकेट में लगाया। रिकी पोंटिंग ने 10वीं क्लास तक पढ़ाई करने के बाद उसे भी छोड़ने का फैसला कर लिया था, जिसका जिक्र उन्होनें अपनी एक किताब में किया है। उन्होनें लिखा था कि ‘मुझे फुटबॉल, पढ़ाई और क्रिकेट में से किसी एक को चुनना था और मैंने अपने दिल की आवाज सुनी और खुद पूछा कि तीनों में से कौनसी चीज का दिमाग में हर वक्त ख्याल चलता रहता है तो जवाब मिला क्रिकेट।

क्रिकेटर इयान यंग से रहा खास रिश्ता

पोंटिंग के करियर को सही दिशा देने में साथी क्रिकेटर रहे इयान यंग का काफी अहम योगदान रहा है। पोंटिंग उन्हें अपना मेंटर मानते थे और यंग के आखिरी समय में भी रिकी पोंटिंग उनके साथ खड़े रहे। एक दिन यंग की दुनिया से चल बसे और उस समय पोंटिंग भारत में मैच खेल रहे थे। वो उनकी अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हो सके, जिसका उन्हें आज तक दुख है।

जब तेंदुलकर को देखने नेट्स के पीछे खड़े हो गए

1992 का विश्वकप खेलने गई भारतीय टीम को ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट एकेडमी के खिलाफ एक अभ्यास मैच खेलना था, जिसका हिस्सा रिकी पोंटिंग भी थे। पॉन्टिंग ने वो किस्सा याद करते हुए अपनी किताब में लिखा था ‘मुझे याद है कि जब मैं ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट एकेडमी की टीम में शामिल था और हमारा मैच भारतीय टीम के साथ था। मैंने सचिन तेंदुलकर के बारे में काफी कुछ सुन रखा था और मैं उन्हें देखना चाहता था। वो नेट पर प्रैक्टिस कर रहे थे और मैं शांत मुद्रा में खड़ा उन्हें देख रहा था’। बता दें कि उस मैच में सचिन तेंदुलकर ने 37 रन बनाए थे, जिनका कैच रिकी पोंटिंग ने ही पकड़ा था।

वॉर्न ने दिया ‘पंटर’ नाम जो जिंदगी भर चिपक गया

ऑस्ट्रेलिया में जानवरों की रेस में पैसे लगाने वालों को पंटर कहा जाता है और रिकी पोंटिंग को ये नाम काफी समय तक उनके साथ क्रिकेट खेले शेन वॉर्न से मिला है। पॉन्टिंग कुत्तों की रेस देखने जाना काफी पसंद करते थे और उस पर पैसा भी लगाते थे, ऐसे में वॉर्न ने उन्हें पंटर नाम दे डाला जो उनका निकनेम बन गया। वॉर्न अक्सर पोंटिंग को नाइट क्लबों में लेजाने के लिए उकसाते थे, लेकिन वह कोई ना कोई बहाना बनाकर मना कर देते थे।

क्रिकेटर से पोंटिंग बन गए लेखक

रिकी पोंटिंग बाहर से जितने शानदार क्रिकेटर हैं, अंदर से उतने अच्छे ही लेखक भी हैं। क्रिकेट से संन्यास के बाद पोंटिंग ने काफी किताबें लिखी जिनमें से ब्रायन मुर्गट्रॉयड (2003, 2004, 2005), ज्यॉफ आर्मस्ट्रांग (2006, 2007, 2008, 2009) और खुद की आत्मकथा ‘एट दा क्लोज ऑफ प्ले’ 2013 शामिल है।

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