दिग्गज आईटी कंपनी विप्रो के फाउंडर अजीम प्रेमजी अपनी कमाई का आधे से ज्यादा हिस्सा कर देते हैं दान

Views : 4372  |  4 minutes read
Azim-Premji-Biography

भारतीय बिजनेस टाइकून, निवेशक व सॉफ्टवेयर कंपनी ‘विप्रो’ के पूर्व अध्यक्ष अजीम प्रेमजी आज 24 जुलाई को अपना 78वां जन्मदिन मना रहे हैं। वह अपनी सादगी और परोपकारी स्वभाव के लिए दुनियाभर में चर्चित हैं। प्रेमजी भारत के सबसे अमीर व्यक्तियों में प्रमुख स्थान रखते हैं। वह वर्ष 1999 से लेकर वर्ष 2005 तक भारत के अमीरों की सूची में शीर्ष स्थान पर रहे हैं। अमीर होने के साथ ही अजीम प्रेमजी सामाजिक और लोक-उपकारी कार्य करने वाले शख्स हैं। उन्होंने अपनी संपत्ति का आधे से ज्यादा हिस्सा दान में देने का निश्चय किया है। इस ख़ास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

अजीम प्रेमजी का प्रारंभिक जीवन

भारतीय कारोबारी अजीम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई, 1945 को मुंबई के शिया मुस्लिम परिवार में हुआ। इनके परिवार का मूल निवास कच्छ (गुजरात) था। इनके पिता मुहम्मद हाशिम प्रेमजी प्रसिद्ध व्यवसायी थे और वह ‘राइस किंग ऑफ़ बर्मा’ के नाम से विख्यात थे। उनके पिता को विभाजन के समय जिन्ना ने पाकिस्तान आने का न्योता दिया था, पर उन्होंने इसे ठुकराते हुए भारत में ही रहने का निश्चय किया।

29 दिसंबर, 1945 को उनके पिता मुहम्मद प्रेमजी ने महाराष्ट्र के जलगांव जिले में ‘वेस्टर्न इंडियन वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड’ की स्थापना की। यह कंपनी सनफ्लावर वनस्पति और कपड़े धोने के साबुन ‘787’ बनाने का कार्य करती थी। प्रेमजी जब अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, तब इसी बीच 11 अगस्त, 1966 को उनके पिता की मौत हो गई और उन्हें इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर भारत वापस आना पड़ा। इस समय उनकी उम्र मात्र 21 वर्ष की थी और उनके कंधों पर कंपनी की जिम्मेदारी आ गईं।

विपरीत परिस्थितियों में कारोबार संभालना पड़ा

विपरीत परिस्थितियों में अजीम ने सूझबूझ से कंपनी का कारोबार संभाला और इसका विस्तार अन्य क्षेत्रों में भी किया। वर्ष 1980 के दशक में अजीम प्रेमजी ने आईटी क्षेत्र के महत्व को पहचाना। भारत से आईबीएम के चले जाने के बाद इस क्षेत्र में रिक्त हुए स्थान का लाभ उठाने के लिए उन्होंने कंपनी का नाम विप्रो कर दिया और उन्होंने अमेरिका के सेंटिनल कंप्यूटर कॉर्पोरेशन के साथ मिलकर मिनी-कंप्यूटर बनाना प्रारंभ कर दिया। इस प्रकार उन्होंने साबुन के स्थान पर आईटी क्षेत्र पर ध्यान केन्द्रित किया और इस क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित कंपनी बनकर उभरे।

विप्रो के पूर्व चेयरमैन का निजी जीवन

विप्रो के पूर्व चेयरमैन अजीम हाशिम प्रेमजी ने यास्मीन नाम की एक युवती से विवाह किया। इन दोनों के दो बेटे रिशद और तारिक हैं। रिशद वर्तमान में विप्रो कंपनी के प्रमुख का पद संभाल रहे हैं। अजीम प्रेमजी के रिटायर होने के बाद से रिशद बतौर चेयरमैन अहम जिम्मेदारी का निवर्हन कर रहे हैं। प्रेमजी ने विप्रो कंपनी को करीब 53 साल तक संभाला था। उनके नेतृत्व में कंपनी न केवल भारत में बल्कि, वैश्विक स्तर पर अपना वर्चस्व बनाने में कामयाब रहीं। अब वह कंपनी में नॉन.एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और फाउंडर चेयरमैन के तौर पर बोर्ड में शामिल हैं। प्रेमजी के बड़े बेटे रिशद प्रेमजी विप्रो के वर्तमान में एग्जीक्यूटिव चेयरमैन हैं।

प्रेमजी का जीवन है सादगी और ईमानदारी से भरा

भारतीय बिजनेसमैन प्रेमजी बहुत ही सामान्य जीवन जीने में विश्वास करते हैं। जब वह कंपनी के काम से बाहर जाते हैं तो हमेशा ऑफिस गेस्ट हाउस में ही रुकते हैं। वे देश में यात्रा के दौरान इकोनॉमी क्लास में सफर करते हैं। एयरपोर्ट आने-जाने के लिए अपनी कार या टैक्सी की बजाय ऑटो से भी चले जाते हैं।

प्रेमजी द्वारा किये समाज सेवा के कार्य

वर्ष 2001 में प्रेमजी ने ‘अजीम प्रेमजी फाउंडेशन’ की स्थापना की। यह संगठन गैर लाभकारी संस्था है। दिसंबर 2010 में उन्होंने भारत में स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए 2 अरब अमेरिकी डॉलर का दान देने की घोषणा की।उनके इस संगठन का लक्ष्य है गुणवत्तायुक्त सार्वभौमिक शिक्षा जो एक न्यायसंगत, निष्पक्ष, मानवीय और संवहनीय समाज की स्थापना में मददगार हो। यह फाउंडेशन भारत के लगभग 13 लाख सरकारी स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के लिए काम करता है।

फोर्ब्स के अनुसार, प्रेमजी की मौजूदा कुल संपत्ति 860 करोड़ US डॉलर यानि करीब 66 हजार करोड़ रुपए है। प्रेमजी इस संपत्ति की चार गुना संपत्ति पहले ही दान कर चुके हैं। वह अब तक 21 अरब डॉलर (1.47 लाख करोड़ रुपए) दान कर चुके हैं।

प्रेमजी को मिले पुरस्कार

अजीम प्रेमजी के बिजनेस और समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों को सम्मानित करने के लिए भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2005 में ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार से नवाजा।

वर्ष 2013 में उन्हें फिर एक बार देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया।

कई मानद उपाधियों से किए जा चुके हैं सम्मानित

वर्ष 2000 में मणिपाल अकादमी ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
वर्ष 2006 में राष्ट्रीय औद्योगिक इंजीनियरिंग संस्थान, मुंबई द्वारा लक्ष्य बिज़नेस विजनरी से सम्मानित किया गया।
वर्ष 2009 में कनेक्टिकट स्थित मिडलटाउन के वेस्लेयान विश्वविद्यालय द्वारा उत्कृष्ट कार्यों के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
सन 2015 में मैसोर विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया।

धीरूभाई कभी भी 10 घंटे से ज्यादा काम नहीं करते थे, यमन में देखा बड़ा आदमी बनने का सपना

COMMENT